कविता नील गगन को ढककर बादल क्यों इठलाता है? नीलगगन तो नीलगगन तू आता जाता है…
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कविता: खुशियों से धरती को भरें दें।।
कविता स्वच्छ हो पानी नदी के अंदर , उज्ज्वल लहरों भरा समंदर, आओ हम कुछ ऐसा…
कविता : केसरिया सबका अभिनंदन
कविता केसरिया बस रंग नहीं, बलिदानों की गाथा है, ओढ केसरी बाना सूरज, जगत जगाने आताहै।…
कविता: चेता रही है प्रकृति सभलो अभी समय शेष है
कविताधारण के कारण ही धरती,पृथ्वी भू कहलाती है।अगणित जीव निजीर्वों का आश्रय बन जाती है।नदी, तालाब,…