कविता स्वच्छ हो पानी नदी के अंदर , उज्ज्वल लहरों भरा समंदर, आओ हम कुछ ऐसा कर दे , खुशियों से धरती को भर दे। बदले अपना भोग तरीका, जीवन हो निरोग उसी का, आओ खुशी से नाता जोड़ें, अंधी दौड़ को पीछे छोड़ें। हरा भरा आंगन हो अपना, हरी भरी हो धरती प्यारी चलो प्रदूषण मुक्त बनाएं , यह है अपनी राजदुलारी। पृथ्वी जल आकाश बचाएं, चलो वायु को शुद्ध बनाएं, मंगल हुई सोच सभी की , आओ हम कुछ ऐसा कर दें। खुशियों से धरती को भरें दें।।
कवि : डा.प्रेम किशोर शर्मा निडर