कवी डा.प्रेम किशोर शर्मा निडर
पीर पर्वत सी लिए सब जी रहे हैं है सड़ा पानी जिसे सब पी रहे हैं। पिंड में जो भी रहा, ना पीर से वंचित रहा, कुछ नया कुछ पुराना, खाते में संचित रहा। दे रहें जो गालियां ,खुद को खुदी के वास्ते, है कठिन मिलने उन्हे , जिंदगी के रास्तें। खूबसूरत ही रची ,उसने तो कायनात सारी, अपनी-अपनी आंखों को क्यों सी रहें हैं, पीर पर्वत सी लिए सब जी रहे हैं। है सड़ा पानी जिसे सब पी रहे हैं।। आग पानी का कभी ना मेल होता , जलते हैं वो दीए ,जिनमें तेल होता । चांद सूरज सतत ही रोशनी को दे रहें, बदले में क्या वो किसी से कुछ ले रहें। रच लिया जब से खुदा को आदमी ने, अपने ही डर से डरें, वो जी रहें है पीर पर्वत सी लिए सब जी रहे हैं। है सड़ा पानी जिसे सब पी रहे हैं।।