बीच हमारे एक संशय मचा रहा है धमाल हर खतरे से तुझे लेना है खुद को संभाल इंसा की खुदगर्जी पर मत कर अब मलाल लेना होगा हमें धरा का फिर से पुरसाहाल खतरा सामने हो तेरे चाहे कितना ही विशाल हौसले से अपने कायम कर एक नई मिसाल कुदरत का फिर से दिखने लगा है कमाल निखर आया है धरा का फिर से पूरा जमाल
आलोक यात्री
कवि, वरिष्ठ पत्रकार