Dainik Athah

कविता

बीच हमारे एक संशय मचा रहा है धमाल
हर खतरे से तुझे लेना है खुद को संभाल
इंसा की खुदगर्जी पर मत कर अब मलाल
लेना होगा हमें धरा का फिर से पुरसाहाल
खतरा सामने हो तेरे चाहे कितना ही विशाल
हौसले से अपने कायम कर एक नई मिसाल
कुदरत का फिर से दिखने लगा है कमाल
निखर आया है धरा का फिर से पूरा जमाल

आलोक यात्री
कवि, वरिष्ठ पत्रकार

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