कविता नील गगन को ढककर बादल क्यों इठलाता है? नीलगगन तो नीलगगन तू आता जाता है । उमड़ घुमड़ कर घुमड़ उमड़ कर, क्यों शोर मचाता है? शोर मचाकर सच बतला!तू किसे डराता है? नील गगन को ढककर बादल क्यों इठलाता है? नीलगगन तो नीलगगन तू आता जाता है ।। हवा के संग तू चलता फिरता, बनकर बिजली तू है गिरता, किसके कहने से बतला तू जल बरसाता है? नील गगन को ढककर बादल क्यों इठलाता है? नीलगगन तो नीलगगन तू आता जाता है ।। हाथी, घोड़ा ,शेर ,बघीरा सब बन जाता है। हिम से ढकी चोटियों जैसा भाव दिखाता है। मनोभाव जैसा हो जिसका तू दर्शाता है। नील गगन को ढककर बादल क्यों इठलाता है? नीलगगन तो नीलगगन तू आता जाता है ।। बरसा कर तू अमृत भू पर प्यास मिटाता है। पृथ्वी के तू अंग अंग को खूब सजाता है। अपना सब कुछ लुटा भूमि पर तू मिट जाता है। पर हित में मिटना ही जीवन , पाठ पढ़ाता है। नील गगन को ढककर बादल क्यों इठलाता है? नीलगगन तो नीलगगन तू आता जाता है ।।
कवि: डॉ. प्रेम किशोर शर्मा निडर
कविता: नीलगगन तो नीलगगन तू आता जाता है ।। ———————————–
कविता: नीलगगन तो नीलगगन तू आता जाता है ।।————————————