केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया रोडमैप, उत्तराखंड से होगी शुरुआत
प्रत्येक अभिभावक चाहता है कि उसके बच्चे अच्छे स्कूल से शिक्षा लें। बड़े शहरों में तो यह बहुत हद तक संभव हो जाता है, लेकिन छोटे शहर और ग्रामीण भारत में यह अब भी बड़े सपने जैसा ही है। हालांकि, पिछले दिनों जब केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि केंद्र सरकार देश के प्रत्येक ब्लॉक मुख्यालय पर केंद्रीय विद्यालय खोलने की योजना बना रही है तो निश्चित ही करोड़ों अभिभावकों के चेहरों पर मुस्कान बिखर गई होगी। दुनिया भर में केंद्रीय विद्यालयों की गिनती उच्च कोटि की शिक्षा देने के लिए होती है।
सबसे अच्छी बात यह है कि केंद्रीय विद्यालय में न केवल देश भर में समान पाठ्यक्रम है, बल्कि यहां की फीस का भार सामान्य व्यक्ति भी वहन कर सकता है।केंद्रीय विद्यालयों की शुरुआत साल 1963 में हुई थी। तब इन्हें सेंट्रल स्कूल के नाम से जाना जाता था। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी.बी.एस.ई) से मान्यता प्राप्त इन स्कूलों को विशेष रूप से भारतीय सैन्य बलों के बच्चों के लिए खोला गया था, ताकि एक से दूसरी जगह स्थानांतरण पर उनकी शिक्षा प्रभावित न हो।
धीरे-धीरे इन्हें केंद्रीय कर्मचारियों के बच्चों के लिए भी खोल दिया गया। मार्च 2018 के आंकड़ों के अनुसार देश में 1225 केंद्रीय विद्यालय हैं, जबकि तीन स्कूल विदेशों (काठमांडू, मास्को और तेहरान) से संचालित हो रहे हैं। दिसंबर 2019 के आंकड़े बताते हैं कि केंद्रीय विद्यालयों में 13 लाख 15 हजार से अधिक बच्चे शिक्षा ले रहे हैं। इन पर 45,477 शिक्षक और अन्य स्टाफ कार्यरत है।अच्छी बात यह है कि सभी केंद्रीय विद्यालयों में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी) की पुस्तकें लागू होती हैं।
निजी स्कूलों में लगने वाली रिफरेंस पुस्तकों के मुकाबले इनकी कीमत बेहद कम होती है। एन.सी.ई.आर.टी की पुस्तकों से देशभर में एक समान पाठ्यक्रम रहता है। बाइलिंगग्वल (हिंदी-अंग्रेजी) के साथ ही केंद्रीय विद्यालय को-एजुकेशनल हैं यानी लड़का-लड़की साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं। अधिकांश केंद्रीय विद्यालय कक्षा 1 से 12 तक संचालित हो रहे हैं। कक्षा 6 से 8 तक संस्कृत को अनिवार्य रूप से पढ़ा जाता है। जहां तक फीस की बात है तो यह निजी स्कूलों की तुलना में बेहद कम है। सामान्य से सामान्य व्यक्ति इस फीस के भार को उठा सकता है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों के लिए ट्यूशन फीस में छूट भी दी जाती है।
बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कक्षा 6 से सिंगल गर्ल चाइड को ट्यूशन फीस के साथ स्कूल डेवलपमेंट फंड से भी राहत दी गई है।शिक्षा के साथ ही केंद्रीय विद्यालायों में बच्चे के संपूर्ण विकास पर खास तौर पर ध्यान दिया जाता है। प्रत्येक स्कूल में खेल के मैदान के अलावा साइंस और कंप्यूटर लैब, पुस्तकालय आदि की सुविधा रहती है।
समाजोपयोगी उत्पादक कार्य के लिए छात्र-छात्राएं जीवन से जुड़े जरूरी कार्यों को सीखते हैं। अधिकांश केंद्रीय विद्यालयों में राष्ट्रीय कैडेट कोर (एन.सी.सी) की शाखाएं भी खुली हुई हैं। अच्छी बात यह है कि नियमित रूप से इन विद्यालयों में खेलों का आयोजन (इंटर जोनल प्रतियोगिताएं भी), साइंस क्विज, विदेशों से एक्सचेंज प्रोग्राम आदि चलते हैं। शिक्षकों के ट्रेनिंग प्रोग्राम पर विशेष ध्यान दिया जाता है। वर्ष 2020-21 के बजट के अनुसार केंद्रीय विद्यालयों पर सरकार 5516.5 करोड़ रुपए खर्च कर रही है।
प्रत्येक वित्तीय वर्ष में केंद्रीय विद्यालय के बजट में बढ़ोतरी हो रही है, जो इस बात का सूचक है कि सरकार इन विद्लायों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दे रही है। केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षा के स्तर को यूं भी समझा जा सकता है कि प्रत्येक साल बोर्ड के परिणामों पर नजर डालें तो इस वर्ष कक्षा 10 में 99.23 प्रतिशत और कक्षा 12 में 98.62 प्रतिशत बच्चे उत्तीर्ण हुए। केंद्रीय विद्यालयों से पढ़कर निकले छात्र आज लगभग सभी क्षेत्रों में कामयाबी के झंडे गाढ़ रहे हैं। वर्तमान में अधिकांश केंद्रीय विद्यालय प्रमुख शहरों और जिला मुख्यालयों में संचालित हो रहे हैं।
बड़े शहरों में इनकी संख्या 3 से ज्यादा है तो अधिकांश जिला मुख्यालयों पर एक ही केंद्रीय विद्लाय खुला हुआ है। कम संख्या में होने के कारण इनमें दाखिले के लिए सदैव जद्दोजहद रहती है। दाखिलों के लिए इतने अधिक आवेदन आते हैं कि लॉटरी से बच्चों का चयन किया जाता है। सांसदों (लोकसभा और राज्यसभा) को केंद्रीय विद्यालय में दाखिले की सिफारिश करने का अधिकार है, लेकिन वे केवल अपने संसदीय क्षेत्र में ऐसा कर सकते हैं। साथ ही, उन्हें बेहद सीमित संख्या में दाखिला करने के अधिकार दिए हुए हैं। ऐसे में अक्सर बच्चे केंद्रीय विद्यालयों में चाहते हुए भी प्रवेश नहीं ले पाते हैं।देश में 734 जिलों में 7195 ब्लॉक मुख्यालय हैं।
एक ब्लॉक मुख्यालय पर अमूमन 50 से ज्यादा ग्राम पंचायतें होती हैं। सभी ब्लॉक देश की कुल आबादी को कवर करते हैं। एक केंद्रीय विद्यालयों में 1000 से 2500 बच्चे शिक्षा ले सकते हैं। यदि सरकार प्रत्येक ब्लॉक में केंद्रीय विद्यालय खोल देती है तो 1.80 करोड़ बच्चे शिक्षा ले सकेंगे। इतने स्कूल खुलने से बढ़ी संख्या में रोजगार भी सृजित होंगे। शिक्षा मंत्री निशंक ने कहा है कि उत्तराखंड के 95 ब्लॉक मुख्यालयों से केंद्रीय विद्यालय खोलने की शुरुआत होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इस योजना को प्रोत्साहित कर रहे हैं। यदि सरकार इस योजना को अमलीजामा पहना दे तो निश्चित ही यह बड़ी शिक्षा क्रांति होगी।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)