भाजपा की 2.0 सरकार ने भारी बहुमत से लोकसभा में 127 वें संविधान संशोधन बिल को पास करवा लिया। कांग्रेस समेत विपक्ष भी इस बिल के समर्थन में खड़ा था। लेकिन कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष की मजबूरी यह है कि वे इस बिल का चाहकर भी विरोध नहीं कर सकते थे। इसका कारण यह है कि यदि विरोध होता तो पिछड़ों का विरोध भी मोल लेना पड़ता। भाजपा ने इस बिल के सहारे हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में बड़ा दांव खेला है। इस बिल के लोकसभा के बाद उच्च सदन अर्थात राज्यसभा में भी पारित होने के बाद राज्यों को पिछड़ों की सूची का विस्तार करने का मौका मिल जायेगा। इसका सीधा अर्थ यह है कि दिल्ली के घेरे बैठे किसान आंदोलनकारियों में से जाटों को अलग करना।
उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा में जाट लंबे समय पिछड़ों में उन्हें शामिल करने की मांग करते आ रहे हैं। दोनों ही राज्यों की भाजपा सरकारें अब जाटों को पिछड़ों में शामिल करने में देरी नहीं करेगी। इसका सीधा कारण आगामी विधानसभा चुनाव है। उत्तर प्रदेश में इसका सीधा असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पड़ेगा। सरकारी नौकरी की दौड़ में लगे युवा वर्ग को इसका लाभ नजर आयेगा। इसके बाद जाट युवाओं की बदौलत यूपी का रण फतह किया जा सकता है। इसके साथ ही यह भी है कि यदि जाट इस किसान आंदोलन से अलग हुए तो भाकियू के साथ ही रालोद को भी इसका नुकसान होगा। भाजपा ने एक सोची समझी रणनीति के तहत ही 127 वें संविधान संशोधन बिल का पासा फैंका है। अब यह तो 2022 के चुनाव ही बतायेंगे कि भाजपा अपनी रणनीति में कहां तक सफल रही है।
————————-