Dainik Athah

मीडिया और मनोरंजन उद्योग से मिला रोजगार

नए वियामक से ही केबल और सेटेलाइट उद्योग को मिलेगी ऑक्सीजन


भारत के इतिहास में वर्ष 2020 वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण काफी प्रभावित रहा, जिसके कारण देश के कृषि, वित्त, रक्षा, विनिर्माण, एयरोस्पेस सहित कई अन्य प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों को दुनिया से जोड़े रखने के लिए बड़े आर्थिक सुधारों से लाभान्वित करना पड़ा है। वहीं, इन सब के बीच भारत के केबल नेटवर्क उद्योग को सरकार की उदासीनता से काफी नुकसान झेलना पड़ा है, जबकि इस क्षेत्र में भी रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। भारतीय टेलीविजन प्रसारण क्षेत्र के प्रमुख अंग मीडिया और मनोरंजन उद्योग हैं, जिन्होंने रोजगार सृजन, आय उत्पन्न करने के साथ ही अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी दी है। बड़ी बात यह है कि इस उद्योग की व्यापक पहुंच देश के 197 मिलियन घरों तक है।

इस उद्योग द्वारा रोजगार सृजन की बात करें तो मीडिया और मनोरंजन उद्योग ने 2018 के अंत तक लगभग 4.5 मिलियन लोगों को सीधे-सीधे रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए। अकेले टेलीविजन प्रसारण क्षेत्र में 27 हजार लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त, ब्रॉडकास्टर्स सामग्री के निर्माण (अपस्ट्रीम मार्केट) के लिए लेखकों, सिने-अभिनेताओं, सिने-श्रमिकों, संगीतकारों को भी रोजगार मिला। इन-हाउस ब्रॉडकॉस्टर या आउटसोर्स द्वारा कंटेंट प्रोडक्शन के क्षेत्र में भी लगभग 1.51 लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए। इसके अलावा, लगातार नुकसान प्राप्त होने के बाद भी केबल और सेटेलाइट से 2 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार मिला। ब्रॉडकास्टिंग क्षेत्र की निर्भरता कैमरों, प्रोडक्शन, होटल, परिवहन, फैशन, पत्रिकाओं और पुस्तक लेखन जैसे क्षेत्रों पर हमेशा रही है। इस कारण अप्रत्यक्ष रूप से इन क्षेत्रों में भी 11.51 लाख से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध होते रहे हैं।

बड़े पैमाने पर रोजगार देने, आत्मनिर्भर बनाने और अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के बाद भी कोरोना काल में सरकार से मिलने वाला आर्थिक लाभ इस सेक्टर तक नहीं पहुंच सका। हकीकत यह भी है कि लाइसेंस व्यवस्था, प्राइस कैप, चैनलों के बंडलिंग पर शर्तें, विज्ञापन की समय-सीमा, विज्ञापन सेवा की सीमा, सेवा प्रदाताओं व उपभोक्ताओं में प्रतिस्पर्धा के बावजूद और उपभोक्ताओं के लिए अनिवार्य वितरण आवश्यकताओं पर प्रतिबंध जैसे तमाम कड़े नियमों के बाद भी भारत में टीवी प्रसारण एक बड़ा उद्योग माना जाता है। अगर हम अन्य देशों के केबल टीवी नेटवर्क उद्योग को संचालित करने वाली नियामक कार्यनीति पर एक सरसरी नजर डालें तो भारतीय नियामकों और अन्य देशों के बीच की सोच और कार्यप्रणाली में स्पष्ट अंतर दिखाई देगा।

भारत में केबल टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत 1990 के दशक में हुई। उसके बाद इस क्षेत्र के विनियमन में लगातार कई परिवर्तन किए गए। हालांकि, ये सभी मुख्य रूप से केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 और केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) नियम, 1994 (सीटीएन अधिनियम और सीटीएन नियम) पर ही आधारित थे। पिछले कुछ वर्षों में, भारत सरकार और संसद ने केबल और सेटेलाइट प्रसारण क्षेत्र के लिए एक अलग नियामक बनाने का प्रयास किया। हालांकि सरकार का यह प्रयास विभिन्न कारणों से धरातल में न उतर सका। इस दौरान विनियमन के नाम पर कई बार अलग-अलग प्रयोग होते रहे।

हम 21वीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश कर रहे हैं तो हमें इस सेक्टर में नियामक प्रथाओं को फिर से देखने और गंभीर रूप से आकलन करने की आवश्यकता है। टीवी प्रसारण क्षेत्र में जारी प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए वर्तमान और नीतिगत ढांचे में बदलाव की आवश्यकता है। यह बदलाव न्यूनतम हस्तक्षेप, सरल नियामक ढांचा, खुलापन, पारदर्शिता, सतत और प्रौद्योगिकी तटस्थ के निर्माण के बिना नहीं हो सकता है।

अब जब इस उद्योग ने एक महत्वपूर्ण मुकाम हासिल कर लिया है, तो यह जरूरी है कि वर्तमान सीटीएन अधिनियम की जगह एक नया कानून बनाकर नया वियामक बनाया जाए। जो देश में केबल और सेटेलाइट प्रसारण के सभी पहलुओं पर समान रूप से लागू हो। इससे इस उद्योग को विकसित होने में काफी सहायता प्राप्त होगी। इसके लिए सरकार द्वारा ट्राई को हटाना जरूरी होगा। हालांकि वर्तमान में भी ट्राई को केवल अस्थायी रूप से ही प्रसारण सेवाओं को विनियमित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कई वर्षों से ट्राई की मुख्य नियामक विशेषज्ञता दूरसंचार क्षेत्र में रही है। यही कारण रहा कि ट्राइ ने प्रसारण क्षेत्र में भी दूरसंचार नियामक सिद्धांतों और तंत्र को ही लागू करने के लिए टैरिफ ऑर्डर और इंटरकनेक्ट नियमों को माध्यम बनाना शुरू कर दिया। जिसके कारण प्रसारण उद्योग जैसे रचनात्मक क्षेत्र को काफी नुकसान हुआ।

इस कारण यह कहा जा सकता है कि सरकार की काफी पुरानी लंबित सोच को अब अमल में लाने का समय आ गया है। इसके लिए सरकार द्वारा केबल व सेटेलाइट उद्योग के लिए एक विशिष्ट और नए कानून बनाते हुए नए नियामक की रचना करनी चाहिए। यह नया निकाय प्रसारण उद्योग की आवश्यक  नीतियों के अलावा टीवी प्रसारण क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए कॉपीराइट अधिनियम और राष्ट्रीय आईपीआर जैसी नीतियों पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को सलाह देगा।

भारत में प्रसारण क्षेत्र की कार्यप्रणाली को अब तक केबल और सैटेलाइट प्लेटफार्मों जैसे डीटीएच, आईपीटीवी को एचआईटीएस और एमआईबी द्वारा परिभाषित किया गया है। हालांकि देश में केबल टीवी उद्योग सीटीएन अधिनियम और उसके द्वारा जारी दिशा निर्देशों के आधार पर संचालित होते हैं। इस कारण यह महत्वपूर्ण है कि नए बिल में इन सभी प्लेटफॉर्म को भी शामिल किया जाए। केबल व सेटेलाइट उद्योग के लिए व्यापक कानून बनाकर सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी अप-लिंकिंग और डाउनलिंकिंग दिशा निर्देशों को ही आदर्श माना जा सकता है।

इस तरह, केबल टीवी नेटवर्क को नए अधिनियम के विभिन्न नीतिगत उपायों से आधुनिकीकरण करने में सहयोग मिलेगा। साथ ही कोविड-19 के कारण इस क्षेत्र को हुए नुकसान की कुछ हद तक भरपाई भी हो सकेगी। हालांकि, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार अपनी पुरानी और लंबित सोच को अमल में लाने की शुरूआत कब करती है। अगर यह जल्द होता है तो आने वाला समय, 2020 में मिले घावों पर मरहम लगाने का काम जरूर करेगा।

केबल टीवी नेटवर्क्स विनियमन अधिनियम के मौजूदा प्रावधान कठोर होने के साथ ही सार्थकता से इतर है। सूचना-प्रसारण मंत्रालय को इस मुदृदे पर गंभीरता से विचार करते हुए नियमों को लचीला और सार्थक बनाना होगा। एमआईबी के सार्थक पहल से केबल टीवी नेटवर्क उद्योग को निश्चित ही संजीवनी मिलेगी। जिसका सकारात्मक प्रभाव इस उद्योग से जुड़े 50 लाख से अधिक लोगों पर पड़ना स्वभाविक होगा। बड़ी बात यह होगी कि देश की अर्थव्यवस्था में जिस केबल टीवी नेटवर्क उद्योग का योगदान लगातार कम होता जा रहा है, उसे बढ़ाने में सरकार के इस सकारात्मक पहल की महत्वपूर्ण भूमिका दिखेगी।

आलोक शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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