निकाय चुनाव: न्यायालय के फैसले पर टिकी निगाहें
महाधिवक्ता ने दाखिल कर दिया सरकार का जवाब
दावेदारों के साथ ही जिलों के अफसरों की नजरें उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ पर
अशोक ओझा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव को लेकर प्रदेशभर के लोगों की नजरें उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ पर लगी है। यदि निर्णय सरकार के खिलाफ आया तो संभव है कि निकाय चुनाव अप्रैल तक टल जायें। इसका अनुमान भी लगाया जा रहा है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में 545 नगर पंचायत, 200 नगर पालिका परिषद और 17 नगर निगम में चेयरमैन और महापौर चुनाव के साथ करीब 13 हजार वार्डों में सभासद का चुनाव भी होना है। निकाय चुनाव को लेकर दायर याचिकाओं पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय और लखनऊ बैंच में 20 दिसंबर मंगलवार को सुनवाई होगी। सरकार की ओर से उच्च न्यायालय में जवाब पेश कर दिया गया है। जवाब सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता विनोद शाही ने पेश किया। सूत्रों के अनुसार सरकार ने आश्वस्त किया है कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था का पूरी तरह पालन किया गया है। ओबीसी आरक्षण को लेकर संविधान में किए गए प्रावधान के साथ सर्वोच्च न्यायालय की ओर से समय-समय पर दिए गए आदेशों का भी पालन किया गया है। निकाय चुनाव में लागू आरक्षण व्यवस्था से किसी भी पक्ष का अहित नहीं होगा।
इस जवाब पर मंगलवार को अपर महाधिवक्ता के साथ ही याची के वकील की बहस होगी। इसके बाद शाम तक निर्णय आने की उम्मीद जताई जा रही है। इस निर्णय पर प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों के साथ ही चुनाव में भाग्य आजमाने को तैयार लाखों दावेदारों और उनके समर्थकों की निगाहें लगी है। सरकार के सूत्र बताते हैं कि यदि याची के पक्ष में निर्णय आता है तो चुनाव अप्रैल 2023 तक जा सकते हैं। इसके पीछे दलील यह दी जा रही है कि सर्वोच्च न्यायालय में सरकार जायेगी तो उससे पहले पूरी तैयारी करनी होगी। इतना ही नहीं सर्वोच्च न्यायालय में एक जनवरी तक अवकाश है। इस बार कोई शीतकालीन पीठ भी गठित नहीं की गई है। इसी कारण यह माना जा रहा है कि निर्णय सरकार के विपरीत आने पर गर्मी के मौसम में चुनाव होंगे। अप्रैल माह में चुनाव की संभावना अधिक व्यक्त की जा रही है।