Dainik Athah

प्रदेश में राजनीति की दिशा तो पूर्व वाले ही तय करते हैं!

उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो गई है। सभी दलों की नजरें इन चुनावों पर लगी है। इसके साथ ही दलों ने रणनीति बनानी भी शुरू कर दी है। इस रणनीति के तहत ही भाजपा राष्टÑपति के दौरे के समाप्त होने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार भी कर सकती है। इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई है। इसी को लेकर प्रदेश की राजधानी में हर मोड़ पर कोई न कोई बात करता मिल जायेगा। मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर कुछ वरिष्ठ राजनीतिज्ञों से बातचीत हुई तो उसका निचोड़ यह निकलकर आयाा कि एक ब्राह्मण के साथ ही गुर्जर भी मंत्री बनने की कतार में है। गुर्जर में एनसीआर के गौतमबुद्धनगर जिले से भी कोई नाम हो सकता है। जबकि ब्राह्मणों में शाहजहांपुर वालों को प्रसाद मिल सकता है। पश्चिम के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष का नाम भी चर्चा में है। लेकिन जिन शाहजहांपुर वालों को प्रसाद मिलने की बात है वे मेरठ वाले पंडित जी पर भारी पड़ रहे हैं।

इसके साथ ही जाटों में से किसी को मंत्री बनाने की चर्चा तो है। लेकिन इसको लेकर अब तक स्थिति स्पष्ट नजर नहीं आ रही। हां, पिछड़ों के नाम पर निषाद- केवट जातियों में से एक को मंत्री पद मिल सकता है। पूरी स्थिति तो महामहीम के वापस लौटने के बाद ही स्पष्ट हो पायेगी। इसी बीच राजनीति में अच्छी पहुंच रखने वाले लखनऊ के एक वरिष्ठ पत्रकार से बात हुई। राजनीतिक गलियारों में उनका नाम भी सम्मान से लिया जाता है। उनसे पूछा कि आखिर प्रसाद से बड़े नेता तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मेरठ वाले पंडित जी है। उन्होंने बहुत सटीक जवाब दिया। कहा कि, प्रदेश की राजनीति में हवा पूर्व से बहती है। पश्चिम का लखनऊ की राजनीति में कोई स्थान नहीं है। बहुत सटीक टिप्पणी थी ये। पहले भी सुन रखा था पश्चिम वालों को लखनऊ में तव्वजो कम मिलती है। ब्राह्मण- ठाकुर विवाद भी पूर्व की ही देन है। यहीं कारण है कि पूर्व के चेहरों को महत्व दिया जायेगा। उन्होंने यह भी कहा पश्चिम वाले अब तक लखनऊ की राजनीति में अपना वजूद नहीं बना पाये हैं। इसके बाद तो कुछ बोलते भी नहीं बना।

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