भारतीय जनता पार्टी को जातिवाद से दूर माना जाता है। कहा जाता है कि चाहे कोई संघ से पदाधिकारी बनकर भाजपा में आयें अथवा कोई कितना ही बड़ा पदाधिकारी हो वह जातिवाद से दूर रहकर काम करता है। लेकिन लगता है कि जातिवाद भाजपा में हावी होने लगा है। जबकि संघ से जुड़े लोग किस जाति के है यह जानने के लिए लोगों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। हम बात कर रहे हैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की। पश्चिम में दो बड़े पदों पर एक ही बिरादरी के लोगों की तैनाती हो गई है। इसके बाद तो जाति विशेष वालों की लगता है बल्ले बल्ले हो गई है। पार्टी के प्रदेश से लेकर क्षेत्र एवं नीचे तक के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं में यह चर्चा शुरू हो गई है कि यदि उस विशेष जाति जिससे ये पदाधिकारी आते हैं के सामने दूसरी जाति वाला आ जाये तो महत्व उनकी अपनी बिरादरी को ही मिलेगा। इसके साथ ही पिछले दिनों संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर तर्क भी दिये जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि गाजियाबाद समेत कई जिलों में इन्होंने अपनी ही जाति वालों को तरजीह दी। इसके चलते आम कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहा है।
कुछ ऐसी ही बानगी ब्लाक प्रमुखों के नामों की घोषणा में भी देखी गई कि मजबूत दावेदार का नाम तय होने के बावजूद अपनी जाति को महत्व दिया गया। इतना ही नहीं पश्चिम में ऐसा भी हो रहा है कि पंचायत चुनावों के बाद से जिलों की कोर कमेटियां भी हाशिये पर जाने लगी है। इसकी पीड़ा भी क्षेत्र के पदाधिकारियों को टीस दे रही है। लगता है कि क्षेत्र में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। अब आगे विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पूर्व अगले कुछ माह तक कार्यक्रमों की बाढ़ सी आयेगी। हालांकि भाजपा एवं संघ में यह लंबे समय तक नहीं चल सकता। देखिये भविष्य में क्या होता है।