उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलती है। लेकिन गाजियाबाद जिला हमेशा ही सरकार को संकट में खड़ा करता रहता हैं। वह चाहे उखलारसी शमशान घाट का मामला हो या अब स्वास्थ्य विभाग एवं औषधि प्रशासन विभाग के घोटाले। उखलारसी शमशान घाट में दो दर्जन से ज्यादा मौतों ने सरकार के साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों को कटघरे में खड़ा किया था। अब ताजा मामला रेमडेसिविर की कालाबाजारी से जुड़ा है। जिले के निजी अस्पतालों ने औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारियों से मिलकर इसकी जमकर कालाबाजारी की है। हद तो तब हो जाती है जब स्वास्थ्य महकमे के मंत्री यह सूचना मांगे कि किन किन लोगों को रेमडेसिविर लगा उनके नाम एवं मोबाइल नंबर बताओ। किन अस्पतालों में लगे उनके नाम भी बताओ। लेकिन बात मिलीभगत की हो तो कौन यह जानकारी देगा। लेकिन प्रदेश के लोगों की सेहत सुधारने के जिम्मेदार मंत्री भी कुछ नहीं कर पा रहे।
रेमडेसिविर की कालाबाजारी का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा कि स्वास्थ्य महकमे में फिर से नया घोटाला सामने आ गया। मलेरिया नियंत्रण विभाग में कर्मचारी वर्षों से बगैर काम किये घर बैठकर वेतन ले रहे हैं। इस मामले का खुलासा शायद ही कभी होता। लेकिन किसी ने नोडल अफसर को शिकायत कर दी। फिर क्या था कुछ ही घंटों में यह सामने आ गया कि 20 कर्मचारी ऐसे हैं जो वर्षों से ड्यूटी पर नहीं आये। उनकी हाजिरी भी लगती है तथा हर माह वेतन भी उनके खातों में पहुंच जाता है। यदि प्रदेश सरकार जांच करवाये तो पूरे प्रदेश में हजारों कर्मचारी ऐसे मिल जायेंगे। हालांकि यह काम पिछली सरकार के समय से ही हो रहा है। अब बताओ जीरो टालरेंस कहां गया। सेहत सुधार महकमे के मंत्री मीडिया के सामने आकर इसलिए नहीं बोलते कि कहीं कुर्सी न छिन जाये। ऐसे में किरकिरी तो प्रदेश के मुखिया यानि बाबा जी की हो रही है। लेकिन इन मामलों में कार्रवाई होगी इस पर सवाल अभी से खड़े हो रहे हैं।