शिवरात्रि 2 अगस्त को मनाई जाएगी। दोपहर बाद 3:26 के बाद चतुर्दशी तिथि आएगी। चतुर्दशी में ही भगवान शिव की जलाभिषेक किया जाता है। और पूजा की जाती है। चतुर्दशी आरंभ होने पर तो भगवान शिव को गंगाजल से अभिषेक करते हैं। दूर-दूर से पवित्र नदियों से जल लाकर के भक्तगण अपने इष्ट को मनाने के लिए अभिषेक करते हैं। लेकिन सामान्य परिवारों में शिव पूजा की विधान इस प्रकार है : सावन के किसी भी सोमवार को शिवरात्रि ,नाग पंचमी को शिव की पूजा करने का विधान है। उसके लिए सबसे पहले पूजन सामग्री को इकट्ठा करें। पूजा सामग्री में विशेष रूप से रौली, चंदन , कलावा , मिष्ठान,फल,बेलपत्र दूध ,दही ,शहद ,पंचमेवा , गंगाजल धतूरा ,भांग , भस्म आदि पदार्थों को एकत्र कर लें।सबसे पहले पवित्र होकर शुद्ध वस्त्र पहनकर एक चौकी पर भगवान शिव की मूर्ति अथवा शिव परिवार स्थापित करें।सबसे पहले हाथ में पुष्प लेकर भगवान शिव और शिव परिवार का आवाहन करें। यदि आपके यहां शिव परिवार है तो उसमें सबसे पहले गणेश जी, उसके बाद मां पार्वती, उसके पश्चात कार्तिकेय, तत्पश्चात नंदी महाराज और अंत में शिव को पुष्प चढ़ाएं।इसी क्रम से भगवान को स्नान करने का महत्व है।
आसन आदि के लिए कलावा अर्पण करें। तांबे के लोटे से अथवा श्रृंगी से भगवान शिव परिवार और शिव का जलाभिषेक करें।जलाभिषेक के पश्चात उनको अलग थाली में रखें ।फिर क्रम से दूध ,दही, घी ,शहद,शर्करा अर्थात पंचामृत से उनको स्नान कराएं।शिव परिवार और शिव के स्नान की पश्चात उनको वस्त्र आदि के लिए कलावा छोड़ें ।शिव परिवार को रोली का टीका लगाए ।भगवान शिव को चंदन से तिलक करें। अक्षत व पुष्प अर्पित करें।इसके पश्चात भगवान शिवलिंग पर भस्म का लेपन करें।बेलपत्र अर्पित करें । मिष्ठान, फल, पान आदि से पूजा करें और तत्पश्चात भगवान शिव की आरती करें ।इस प्रकार सूक्ष्म पूजा का विधान है।ओम नमः शिवाय का जाप तथा महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना लाभकारी होता है।रुद्र अष्टाध्यायी के 8 अध्याय के मंत्रों द्वारा अथवा किसी ब्राह्मण के द्वारा भी रुद्राभिषेक करा सकते हैं।मंदिरों में तो सूक्ष्म पूजा में केवल जलाभिषेक, दुग्ध स्नान ही करा सकते हैं।
आचार्य शिवकुमार शर्मा, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कन्सलटैंट,गाजियाबाद