Dainik Athah

धरातल पर पूरी तरह से तहस नहस नजर आया भाजपा का ‘जुझारू’ संगठन

  • लोकसभा चुनाव: उत्तर प्रदेश में क्यों हुई भाजपा की हार
  • पन्ना प्रमुख से लेकर बूथ अध्यक्ष अथवा अन्य कार्यकर्ताओं ने जमीन पर नहीं किया काम
  • केवल कागजों एवं जरुरी बैठकों तक से लेकर वर्चुअल बैठकों तक सिमट कर रह गया संगठन

अशोक ओझा
लखनऊ
। लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी। जिस भाजपा ने प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई थी उसके तकरीबन दो साल से अधिक के समय में भाजपा आधे से कम में सिमट कर रह गई। इसके पीछे कोई प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराये तो वह अपनी कमी छुपा रहा है। हकीकत यह है कि इन दो सालों में भाजपा संगठन जमीन पर कहीं नजर ही नहीं आया। आयाम की तो बात ही दूर है अधिकांश पदाधिकारी केवल कागजों में काम करते नजर आये, धरातल पर उतरकर किसी ने देखने का प्रयास ही नहीं किया कि जमीन पर क्या हो रहा है।

कागजों में ही काम करते रहे पन्ना प्रमुख और बूथ अध्यक्ष
भाजपा ने ही सबसे पहले पन्ना प्रमुख के नये पद को बनाया था। पन्ना प्रमुख के पास मतदाता सूची के एक पन्ने की जिम्मेदारी होती है। पन्ने में शामिल मतदाताओं से सतत संपर्क और उन मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में करने के साथ ही उनका मतदान भी सुनिश्चित करना पन्ना प्रमुख का दायित्व होता है। लेकिन पूरे प्रदेश में कहीं भी पन्ना प्रमुख काम करते नहीं मिले। इसके साथ ही बूथ अध्यक्षों की स्थिति यह है कि बूथ अध्यक्ष भी जिला और मंडल अध्यक्षों ने कागजों में पूरे कर दिये। धरातल पर बूथ अध्यक्ष भी कहीं नजर नहीं आये।

कोई भी सम्मेलन हो हर सम्मेलन में चेहरे एक ही रहते हैं
यदि बात करें सम्मेलनों की तो चाहे पिछड़ा वर्ग का सम्मेलन हो, एससी मोर्चा का सम्मेलन हो, शिक्षक सम्मेलन हो अथवा प्रबुद्ध सम्मेलन हो सभी सम्मेलनों में चेहरे वहीं रहते थे। इससे लगता था कि क्या भाजपा में कार्यकर्ताओं एवं जिस प्रकार का सम्मेलन है उसके अनुरूप समर्थक नहीं मिलते। जो भी सम्मेलन होता था उसमें सबसे आगे की सीटों पर अवश्य इस प्रकार के कुछ लोगों को बैठा दिया जाता था।

बड़े पदाधिकारी जब लाइजनिंग करें तो …
एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि बड़े पदाधिकारी केवल डांट फटकार कर काम की इतिश्री कर लेते हैं, जमीन पर जाकर देखने की किसी को फुर्सत ही नहीं मिलती। पार्टी के लिए भी वहीं समय दिया जाता रहा है जो लाइजनिंग से बच जाये अथवा अपना काम कैसे बनें इसकी उधेड़बुन।

क्षेत्र के प्रभारियों ने अपने प्रभार वाले क्षेत्रों को कितना समय दिया
अब बात करें क्षेत्रों के प्रभारियों की तो उनसे पूछा जाना चाहिये कि उन्होंने अपने प्रभार वाले क्षेत्र को कितना समय दिया। इनके पास भी काम के लिए समय ही नहीं था। हां यदि कोई बड़ा नेता उस क्षेत्र में आ रहा होता है तब अवश्य इनकी उपस्थिति नजर आती रही। अन्यथा इनका भी अधिकांश समय गणेश परिक्रमा और लाइजनिंग में ही गुजरता रहा है। हालत यह है कि प्रदेश कार्यालय में बैठने वाले दर्जनों नेताओं ने केवल लाइजनिंग के लिए स्थान का उपयोग किया।

बड़े पदाधिकारियों ने गणेश परिक्रमा करने वालों को दी तव्वजो
यदि प्रदेश के बड़े पदाधिकारियों की बात करें तो वे भी एक कॉकस में ही घिर कर रह गये। जिन लोगों का अपने क्षेत्र में कोई वजूद नहीं ऐसे तथाकथित नेताओं ने प्रदेश के बड़े पदाधिकारियों के यहां पर कब्जा जमा लिया और जमीनी कार्यकर्ताओं को इनसे दूर कर दिया। इसमें शायद ही कोई बचा हो। अब इस स्थिति में किसी और को दोष देना कहां तक सही है।


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