- उपाध्यक्ष की अगुवाई में सड़क पर उतरा प्राधिकरण का अमला
- अल्प समय में ही अतुल वत्स ने ‘जंग’ खाई फौज को ‘जंग’ के लिए कर लिया तैयार
अथाह संवाददाता, गाजियाबाद। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में अर्से से ‘राग दरबारी’ गाया जा रहा था। लेकिन यह पहला अवसर है जब प्राधिकरण के तमाम दरबारी, राग भैरवी गाने पर मजबूर हुए हैं। जंग खाई फौज को जंग के लिए तैयार कैसे किया जाता है? प्राधिकरण उपाध्यक्ष अतुल वत्स ने अपने अल्प कार्यकाल में ही यह कारनामा भी करके दिखा दिया। वत्स की अगुवाई में अधिकारियों, अभियंताओं व कर्मचारियों की फौज रविवार को अलसुबह मधुबन बापूधाम के गोल चक्कर के पार्क में श्रमदान करते नजर आई। इससे पहले शनिवार को जीडीए सचिव अपने कार्यालय में इसी योजना के दो अवंटियों के गले में माला डालकर उनके भूखंडों की रजिस्ट्री करने की औपचारिकताएं पूरी करवाते नजर आए।
गौरतलब है कि एक समय सूबे में अपनी विशिष्ट पहचान कायम करने वाला जीडीए अर्से से बदहाली के दौर से गुजर रहा था। मधुबन बापूधाम योजना के बाद से प्राधिकरण की कोई नई योजना सामने न आने के कारण एक तरफ प्राधिकरण की आर्थिक सेहत जहां तेजी से बिगड़ रही थी, वहीं कर्मचारियों व अधिकारियों की फौज के वेतन से प्राधिकरण तेजी से कंगाली की ओर बढ़ रहा था। सबसे सोचनीय मुद्दा यह है कि प्राधिकरण की आय का एक बड़ा हिस्सा कर्ज अदायगी में जा रहा है, लेकिन मौजूदा उपाध्यक्ष अतुल वत्स ने आते ही विभिन्न मोर्चों पर स्वयं लोहा लेना शुरू कर दिया है। जिसके चलते न सिर्फ आवंटियों को राहत मिलनी शुरू हुई है बल्कि विभिन्न योजनाओं में बुनियादी सुविधाओं में भी सुधार देखने को मिलने लगा है। अवैध निर्माण पर उनके रुख के चलते जो खजाना अभियंताओं व अधिकारियों की जेब में जा रहा था, वह जीडीए के खजाने में पहुंचने लगा है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि बीते दो दशकों से प्राधिकरण की अति महत्वाकांक्षी मधुबन बापूधाम योजना बदहाली का शिकार बनी हुई थी। आवंटियों की गुहार के बावजूद कोई भी जिम्मेदार अफसर आज से पहले वहां झांकने तक नहीं गया था। मधुबन बापूधाम योजना में बुनियादी सुविधाओं के अभाव से लेकर आवंटियों की समस्याओं की फेहरिस्त काफी लंबी है। और तो और अरबों रुपए की लागत से बना प्राधिकरण का नया प्रशासनिक भवन भी इसी योजना में स्थित है। धनाभाव के कारण नई इमारत में प्राधिकरण कार्यालय के स्थानांतरण का काम भी अर्से से रुका पड़ा है। मौजूदा उपाध्यक्ष वत्स जिस तरह मधुबन बापूधाम योजना पर फोकस कर रहे हैं उससे प्रतीत होता है कि आने वाले समय में इस योजना का विकास भी गुड़गांव व नोएडा की तर्ज पर होने वाला है।
बहरहाल वातानुकूलित कमरों में बैठकर फाइल निपटने वाले अफसर व अभियंता जो कल तक राग दरबारी गाने में मशगुल थे उपाध्यक्ष की सक्रियता के बाद फाइल और नक्शे थामे सड़कों की धूल फांकते नजर आ रहे हैं। और तो और रविवार को अल सुबह प्राधिकरण के अफसर, अभियंताओं व कर्मचारियों की फौज सुबह साढ़े पांच बजे ही मधुबन बापूधाम योजना के मुख्य पार्क की सफाई करती नजर आई। गौर फरमाने वाली बात यह है कि राग भैरवी भोर का राग है और भोर में ही गाया जाता है। अच्छी बात यह है कि जीडीए के जिन अफसरों व कर्मचारियों के सुर और बोल बिगड़ गए थे उपाध्यक्ष की इन कोशिशों के चलते उनके व्यवहार, कार्यशैली व बोलचाल में कुछ रागात्मकता आ ही जाएगी।