Dainik Athah

मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट का निरीक्षण करने गए जीडीए अभियंताओं से हुई मारपीट


मुफ्तखोरों की ऐशगाह तो नहीं बन जाएगा कैलाश मानसरोवर भवन


– मीडिया में आए अफसरों के बयान भी हो सकते हैं अराजकता की मुख्य वजह


 मुख्य संवाददाता
गाजियाबाद
। सूबे के मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘कैलाश मानसरोवर भवन’ का विधिवत शुभारंभ होने से पहले ही ‘मुफ्तखोरों’ ने अड़ंगा लगाना शुरू कर दिया। भवन का निरीक्षण करने गए जीडीए के दो अभियंताओं के साथ शुक्रवार को कुछ अराजक तत्वों ने मारपीट कर दी। अधीक्षण अभियंता आलोक रंजन का कहना है कि सहायक अभियंता पीयूष सिंह व अवर अभियंता बीएस जारिया के साथ मारपीट की घटना मौके पर लगे सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गई है। जिसके आधार पर इंदिरापुरम थाने मे हमलावरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी गई है। मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट में हुई इस घटना के बरक्स सूबे के एक नौकरशाह के उस बयान को भी देखना होगा, जिसमें उन्होंने कथित रूप से इस भवन की सुविधाएं कम दर पर आम लोगों को भी मुहैया कराने की घोषणा की थी।
  गौरतलब है कि मुख्यमंत्री की पहल और हज हाउस की तर्ज पर इंदिरापुरम के शक्ति खंड इलाके में इसकी स्थापना की गई है। 31 अगस्त 2017 को गाजियाबाद आगमन पर मुख्यमंत्री ने कविनगर रामलीला मैदान में अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट की घोषणा की थी। स्थानीय सांसद द्वारा 2018 में इस ड्रीम प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया गया। जिसका निर्माण 6 जून 2018 को शुरू हुआ था। दिसंबर 2020 में मुख्यमंत्री इस भवन का लोकार्पण भी कर चुके हैं। कुछ तकनीकी बाधाओं की वजह से जीडीए भवन निमार्ता एजेंसी से इसका स्वामित्व हासिल नहीं कर सका है। बताया जाता है कि इसी वजह से इस भवन का विधिवत शुभारंभ नहीं हो सका है।


 रंजन के अनुसार जिस समय दोनों अभियंता भवन की निरीक्षण आख्या तैयार कर रहे थे उसी दौरान पांच युवक वहां आ धमके। जो शोक सभा के लिए भवन नि:शुल्क बुक करने की मांग पर अड़ गए। अभियंताओं द्वारा असमर्थता जताने पर युवकों ने उनसे मारपीट शुरू कर दी। सवाल यह उठता है कि इस मुफ्तखोरी की असल वजह क्या है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा। करीब डेढ़ माह पूर्व सूबे के एक वरिष्ठ नौकरशाह ने मीडिया में कथित रूप से यह घोषणा की थी कि कैलाश मानसरोवर भवन में जल्द ही श्रद्धालुओं के अलावा आम लोग भी एंट्री कर सकेंगे। बताया जाता है कि शासन के निर्देश पर अपर मुख्य सचिव ने यह कथित पत्र जारी कर फर्म के चयन के लिए जीडीए को बतौर नोडल एजेंसी भी नामित किया था।

  उल्लेखनीय है कि कैलाश मानसरोवर भवन प्रति वर्ष जून से सितंबर के बीच ही श्रद्धालुओं और चारधाम यात्रियों के लिए उपलब्ध रहेगा। शासन की मंशा शेष आठ महीनों में आम लोगों को भी इसकी सुविधाओं का लाभ पहुंचाना रहा होगा। शासन के इस निर्णय की वजह यह समझी जा सकती है कि आम लोगों को सुविधाओं के बदले मिलने वाली राशि से भवन का रखरखाव उचित ढंग से हो जाएगा। गौरतलब है कि सूबे के अपर मुख्य सचिव की कथित घोषणा के बाद जीडीए के मुख्य अभियंता का बयान भी मीडिया में आया था। जिसमें उन्होंने कथित रूप से कहा था कि शासन के निर्देश के क्रम में दिल्ली-एनसीआर के कई बड़े होटलों व अतिथि गृहों का निरीक्षण कराया गया है। सुविधाओं का सर्वे करने के बाद निरीक्षण मानक तैयार किए गए हैं। जिसमें कक्ष का किराया 200 रुपए प्रतिदिन और डेढ़ सौ से 200 रुपए प्रतिदिन पर भोजन उपलब्ध होगा।
 गौरतलब है कि चार मंजिला इस भवन में 280 लोगों के रुकने की सुविधा है। भवन में चार बेड वाले 40 और डबल बेड वाले 48 कमरे हैं। भवन में सेमिनार हॉल और मेडिकल हॉल की भी व्यवस्था है। इस भवन के निर्माण पर करीब 70 करोड़ रुपए व्यय का अनुमान है। इस भवन की सुविधाएं किसी पांच सितारा होटल से कम नहीं होंगी। अब आते हैं आज के प्रकरण पर। आज की घटना इस बात का संकेत देती है कि मीडिया में आए अपर प्रमुख सचिव व जीडीए के मुख्य अभियंता के कथित बयान ने ही तो कहीं मुफ्तखोर को मनमानी का हक नहीं दे दिया? आज की घटना यह सवाल भी खड़ा करती है कि यह भवन इलाके के मुफ्तखोरों की ऐशगाह तो नहीं बन जाएगा?
– क्या कहते हैं जीडीए के मुख्य अभियंता
जीडीए के मुख्य अभियंता राकेश कुमार गुप्ता का कहना है कि हमने धर्मार्थ विभाग को अवगत कराया है कि भवन में सुविधाओं की जो दरें हैं वह तीर्थ यात्रियों के लिए उचित हैं। इसके अतिरिक्त शेष के आठ महीनों में क्या दरें रखी जाएं वह और निर्धारित की जाए। उनके (धर्मार्थ विभाग) द्वारा अभी दरें निर्धारित नहीं की गई हैं। उनके द्वारा पत्र भेजा गया है कि यदि जीडीए द्वारा इसको टेकओवर कर लिया गया है तो दरें निर्धारित कर लें। अभी विभिन्न सुविधाओं की दरें निर्धारित नहीं की गई हैं।

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