Dainik Athah

नौकरशाही की असल परीक्षा होगी विधान परिषद चुनाव

विधान परिषद चुनाव से बड़ा संदेश देने के प्रयास में भाजपा

भाजपा- सपा ने शुरू की तैयारी, सीटें जीतने पर जोर

होली से पहले ही भाजपा जारी करेगी सूची

अधिकांश पूर्व एमएलसी पर ही दाव लगाना चाहेगी सपा

अशोक ओझा,
लखनऊ।
उत्तर प्रदेश में विधान परिषद (स्थानीय निकाय) की 36 सीटों के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही सरकार गठन के साथ ही भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर परीक्षा से गुजरना होगा। इसके साथ ही प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी भाजपा को इन चुनावों में वाक ओवर देने को तैयार नहीं है। सीधा सीधा माना जाये तो यह योगी सरकार के साथ ही भाजपा संगठन की परीक्षा तो होगी ही साथ ही प्रदेश की नौकरशाही का पहला बड़ा इम्तिहान भी यह चुनाव होंगे।

बता दें कि विधान परिषद (एमएलसी) के पिछले चुनाव में उस समय प्रदेश की सत्ता में रही सपा ने 36 में से 33 सीटों पर कब्जा किया था। अब भी उसके 31 सदस्य है। उस समय सपा की यह जीत इकतरफा रही थी। जाहिर है सरकारी मशीनरी का जमकर उपयोग किया था। इस बार भाजपा लगातार दूसरी बार उत्तर प्रदेश की सत्ता में है। भाजपा की नजर इन चुनावों में क्लीन स्वीप करने के साथ ही उत्तर प्रदेश विधान परिषद में बहुमत हासिल करना भी है। वैसे भी कहा जाता है कि एमएलसी स्थानीय निकाय चुनाव सत्ता के होते हैं। जिस दल की सत्ता होती है उसी के यह चुनाव होते हैं।

इस चुनाव में मुख्य रूप से नगर पालिका, नगर पंचायत के सभासदों के साथ ही चेयरमैन, ग्राम प्रधान, बीडीसी सदस्य, जिला पंचायत सदस्य मतदाता होते हैं। यदि देखा जाये तो शहरी क्षेत्रों में अधिकांश जिलों में नगर पालिकाओं, नगर निगमों पर भाजपा का कब्जा है। जबकि प्रदेश के अधिकांश ब्लाक प्रमुख पदों के साथ जिला पंचायतों पर भी भाजपा काबिज है। रही बात ग्राम प्रधानों की तो उनको अपने पक्ष में करना कोई बड़ी मशक्कत वाला काम नहीं है। लेकिन समाजवादी पार्टी जिसकी विधानसभा चुनावों में सीटें बढ़ी है पूरी ताकत से एमएलसी चुनाव लड़ेगी। इसके संकेत पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने रविवार को हुई एमएलसी की बैठक में दे दिये। इसके साथ ही यह संकेत भी दिये कि अधिकांश वर्तमान एमएलसी को ही पार्टी फिर से चुनाव में उतारेगी। इससे यह स्पष्ट है कि मुकाबला रोचक होगा।

एमएलसी चुनाव में गिनती के मतदाता होते हैं। यदि देखा जाये तो हर सीट पर चार से छह हजार मतदाता हैं। इस कारण चुनाव में नौकरशाही (पुलिस- प्रशासन) के जिलों में तैनात वरिष्ठ अधिकारियों (डीएम- एसएसपी) की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश के अनेक जिलों के अधिकारियों पर यह आरोप लगता रहा है कि वे सपा के पक्ष में काम कर रहे थे अथवा भाजपा विरोधी मानसिकता वाले हैं। भाजपा अब तक नौकरशाही को परख भी नहीं पाई थी कि कौन अधिकारी उसके हैं तथा कौन उसकी विरोधी मानसिकता वाले। हां इतना अवश्य है कि किसी अधिकारी ने ताकतवर सांसदों अथवा किसी ने मंत्रियों की बदौलत खुद को सुरक्षित रखा। इसके साथ ही इनकी मदद से ही मलाई वाली सीटों की तैनाती पाई।

अब एमएलसी चुनाव इन अधिकारियों की असल परीक्षा होंगे। भाजपा सूत्रों के अनुसार इन चुनावों में अधिकारियों की निष्ठा की जांच हो जायेगी। यदि पुलिस- प्रशासन के अधिकारियों ने भाजपा को सहयोग नहीं किया तो निश्चित ही जिलों से उनकी रवानगी तय हो जायेगी। इस चुनाव के बाद भाजपा प्रत्याशियों के साथ ही जिलों से भी अधिकारियों के संबंध में रिपोर्ट मांगेगी। अब देखते हैं कि नौकरशाही भाजपा के प्रति अपनी निष्ठा का प्रदर्शन कर पाती है अथवा नहीं।

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