एक्जिट पोल के बाद बल्लियों उछल्ल रहे भाजपाई
दक्षिण के साक्षी चैनल के साथ ही कुछ सर्वे में सपा गठबंधन को दिखाया जा रहा स्पष्ट बहुमत
ये सर्वे भाजपाइयों का बढ़ा सकते हैं सिरदर्द, तो सपाई हो सकते हैं खुश
अथाह ब्यूरो,
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा के सोमवार को आये एक्जिट पोल के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के साथ ही कार्यकर्ताओं ने बड़ी राहत महसूस की है। भाजपा कार्यकर्ताओं की स्थिति यह है कि एक्जिट पोल के नतीजे देखने के बाद वे भविष्य की रणनीति बनाने में लग गये हैं। लेकिन कुछ सर्वे खबरिया चैनलों के पूरी तरह से उलट है। इन सर्वे में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले सपा गठबंधन को स्पष्ट एवं बड़ा बहुमत दिखाया जा रहा है।
सोमवार को आये एक्जिट पोल ने चाहे भाजपा को खुश कर दिया हो। लेकिन ब्यूरोक्रेसी में ऐसे अनेक लोग हैं जो इन सर्वे को बकवास की संज्ञा दे रहे हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि ये सर्वे वर्तमान परिस्थिति के उलट है तथा सरकार सपा गठबंधन की ही बनेगी। इसके पीछे उनके तर्क भी है। इसके साथ ही बड़े नेताओं की भाव भंगिमा एवं बॉडी लैंग्वेज को भी गौर से देख रहे हैं।
ऐसे अधिकारी प्रदेश के अधिकांश जिलों में मीडिया के साथ ही अफसरों के संपर्क में भी रहते हैं। एक अधिकारी से बात होने पर वे दावे के साथ कहते हैं कि उन्हें इन एक्जिट पोल पर भरोसा नहीं है। उनका मानना है कि सपा सरकार बन रही है, वह भी 240 से 280 सीटों के बीच आयेगी। यह बड़ी बात है। उनकी दाद देनी पड़ेगी जो हवा के विपरीत चल रहे हैं। ऐसे स्पष्टवादी कम ही पाये जाते हैं। वह भी अपने करीबियों के साथ।
अब बात करते हैं सपा को स्पष्ट बहुमत देने वाले सर्वे की। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर जगन मोहन रैड्डी की पत्नी के स्वामित्व वाले दक्षिण भारतीय चैनल साक्षी के साथ ही देशबंधु लाइव के साथ ही कुछ अन्य सर्वे है जिनमें भाजपा को 134 से 150, सपा गठबंधन को 228 से 244 बसपा को 10 से 24, कांग्रेस को 1 से 9 सीटें दे रहे हैं।
अनेक बार देखने में आया है कि बड़े चैनलों के सर्वे जहां औंधे मुंह गिर जाते हैं वहीं फिसड्डी समझे जाने वालों की बात एवं सर्वे सही साबित होते हैं। याद है 2007 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जब सभी पूर्वानुमानों को ध्वस्त करते हुए बसपा की प्रचंड बहुमत की सरकार बनी थी। इसी प्रकार 2012 में सपा ने भी सभी पूर्वानुमानों को ध्वस्त किया था। अब एक्जिट पोल के नतीजे सामने आने के बावजूद बड़ी संख्या में ऐसे विश्लेषक है जो इन पूर्वानुमानों के विपरीत अपना सर्वे बताते हैं। इस स्थिति में दस मार्च को चुनाव परिणामों पर सभी की नजरें टिकी हुई है।