… पद की आस में दुबला रहे हैं हैंडपंप वाले
पिछले दिनों रालोद के नये मुखिया ने पार्टी में अनुशासनहीनता करने वालों को सबक सिखाया था। इसके साथ ही दर्जनों लोगों को पद मुक्त कर दिया। पद मुक्त लोगों में अधिकांश ऐसे थे जो गाड़ी में अकेले चलते थे। लेकिन अब बगैर पद के वे नजर भी नहीं आ रहे हैं। केवल प्रमुख कार्यक्रमों में ये बेचारे चेहरा दिखाने के लिए पहुंच जाते हैं। इनमें से अधिकांश नेता एक जाति विशेष से जुड़े हैं। लेकिन चौधरी साहब के नजदीकी दूसरी बिरादरी के नेता के यहां इनमें से अनेक लोगों को पानी भरना पड़ता है। एक नेताजी कहते हैं कि क्या करें मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है। अब चल तो इन राष्टÑीय पदाधिकारी ही रही है। अब ऐसे में करें तो क्या करें। अब तक भी पार्टी की प्रदेश, राष्टÑ एवं प्रदेश की कमेटी घोषित नहीं हुई है।
श्रेय लूटने से क्या होगा, काम तो…
अपने क्षेत्र में विकास कार्यों का श्रेय लेने की होड़ किसे नहीं होती? लेकिन भाजपा के एक नामित पार्षद ऐसे हैं जिन्हें कोई परवाह तक नहीं है कि काम का श्रेय किसे मिल रहा है? दरअसल इन दिनों भाजपा के शहर मंडल में एक निर्वाचित पार्षद, पार्टी के नामित पार्षद के विकास कार्यों पर डाका डालने का काम कर रहे हैं। यह महाशय पार्षद बनने के बाद दूसरे दल से भाजपा में शामिल हुए हैं। चूंकि भाजपा के पुराने कार्यकर्ता होने के बावजूद पूर्व मंडल अध्यक्ष को टिकट नहीं मिला तो भाजपा ने नामित पार्षद बनाकर भेज दिया। अब यह साहब क्षेत्र में विकास कराने के लिए नगर निगम के चक्कर खुद काट रहे हैं और ट्यूबवेल लगाने का श्रेय लूट रहे हैं निर्वाचित पार्षद। लेकिन सरल स्वभाव वाले नामित पार्षद महोदय द्वारा इस पर भी संतोष किया जा रहा है कि काम तो उनके वार्ड में उनके कहने से हो रहा है। यह बात अलग है कि उनका वार्ड भी निर्वाचित पार्षद के क्षेत्र में ही आता है। अब इसे क्या कहेंगे- सरल स्वभाव या ज्यादा सीधापन। जो अपने कामों का श्रेय लूटने वालों से खफा तक नहीं है।
… और चाल कर गई काम
जिले की एक नगर पालिका में विपक्षी सभासदों का दबदबा है। अधिकांश सभासद को एक पूर्व जन प्रतिनिधि का वरदहस्त हासिल है। इशारा हुआ तो चुनाव से पहले फूल वाली पार्टी के चेयरमैन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बेचारे चेयरमैन उल्टा सीधा सुनकर भी चुप रहते हैं। आखिर भले जो है। लेकिन एक सभासद पालिका के सफाई निरीक्षक से भिड़ गये। फिर क्या था थाने में रिपोर्ट दर्ज हुई और सफाई कर्मियों ने धरना स्थल पर ही अपने अंदाज में कब्जा कर लिया। हालात गंभीर होती इससे पहले ही सभासदों ने आंदोलन समाप्त करने में ही अपनी भलाई समझी और समझौते के बाद आंदोलन समाप्त। इसे कहते हैं चाल कर गई काम।