भाजपा के बड़े नेताओं में शुमार एवं राम मंदिर के लिए अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार कुर्बान करने वाले कल्याण सिंह के निधन के बाद सपा प्रमुख की उनकी से दूरियों ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। क्या राजनीति इतनी नीचे गिर गई है कि प्रदेश के एक बड़े नेता को श्रद्धांजलि अर्पित करने में भी वोट बैंक नजर आने लगा है कि कहीं अल्पसंख्यक नाराज न हो जाये। यह पहली बार हुआ कि प्रदेश में किसी बड़े नेता का निधन हुआ हो और नैतिकता के नाते ही सही विपक्षी नेता भी श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचते हैं। यह परंपरा अब तक सभी दलों के नेता निभाते रहे हैं।
बसपा प्रमुख मायावती भी कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंची थी। लेकिन सपा मुखिया एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नहीं। यह स्थिति तब है जबकि कल्याण सिंह पिछड़ों के बड़े नेता थे। सपा भी लगातार पिछड़ों की ही राजनीति करती रही है। अखिलेश का न पहुंचना भाजपा नेताओं को अखर रहा है। इसको लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य हमलावर है। लेकिन यह भी गलत है। कोई श्रद्धांजलि अर्पित करने जाये अथवा नहीं यह उस व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि वह क्या सोचता है। हालांकि सपा से विधानमंडल में श्रद्धांजलि अर्पित करने राम गोविंद चौधरी पहुंचे थे। सपा का कहना है कि अखिलेश यादव के बाहर होने के कारण राम गोविंद चौधरी पहुंचे थे। अब श्रद्धांजलि को लेकर मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिये। श्रद्धांजलि को राजनीति से जोड़कर भी नहीं देखना चाहिये। जिन लाखों लोगों की श्रद्धा थी वे श्रद्धांजलि अर्पित करने गये। लेकिन जो नहीं गये हो सकता है कि उनकी आस्था न हो। हो सकता है कि कुछ और कारण हो। सबकी अपनी श्रद्धा होती है। इस विवाद को बढ़ाना भी लोग उचित नहीं मानते।