देश के मशहूर शायरों की कतार में शामिल रहे मुनव्वर राणा को देश विरोधी बयानों के लिए जाना जाता है। कभी वे अवार्ड वापसी गैंग का नेतृत्व करते नजर आते हैं तो कभी देश में ही रह कर उसकी मुखालफत करते हैं। उन्होंने ताजा बयान देकर यह साबित कर दिया है कि उनकी मानसिकता भारत विरोध की हो चुकी है। उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान की क्रूरता नजर नहीं आती। लेकिन वे कहते हैं कि तालिबान से ज्यादा क्रूरता तो भारत में है। इसके साथ ही इसके साथ ही उन्होंने यहां तक कह दिया कि यूपी में हिंदू तालिबानी है। इससे भी दो कदम आगे बढ़कर राणा ने तालिबान से महर्षि वाल्मीकि की तुलना कर दी। मुनव्वर राणा आपको इस देश ने जितना मान सम्मान दिया है कि क्या इतना मान सम्मान किसी | मुस्लिम देश में प्राप्त कर दिखाओगे। इन बयानों से यह साबित होता है कि मुनव्वर राणा की मानसिकता भारत विरोधी हो चुकी है। उनके बयान समाज में जहर घोलने का काम भी कर रहे हैं तथा वे अब लोगों को भड़काने का काम भी करने लगे हैं। देश के एक मशहूर शायर को क्या यह शोभा देता है इसके संबंध में तो देश के कवि, शायर एवं साहित्य प्रेमी अधिक बता सकते हैं।
मैंने कुछ वर्ष पूर्व मुनव्वर राणा को गाजियाबाद में ही देखा था । उस समय उनके साथ फोटो खिंचवाने की होड़ सी थी। वे सभी हिंदू थे। क्या मुनव्वर राणा को देश एवं समाज विरोधी बयानों के बाद ऐसा ही प्यार एवं सम्मान देश में मिल सकता है। भारत में रहकर भारत विरोधी मानसिकता तो इस सहिष्णु देश की जनता शायद सहन कर लें। लेकिन असलियत पता चले जब वे पाकिस्तान अथवा अफगानिस्तान में जाकर उनकी बुराई करें। हालांकि उनके बयानों के चलते दोनों ही मुल्कों में उन्हें सिर आंखों पर बैठाया जायेगा। लेकिन वहां जाकर एक बार उन देशों की बुराई करने की वे हिम्मत जुटायें तब मानें कि उनमें सच बोलने की ताकत है । एक अपील है कि तालिबान का समर्थन करो, उसकी शान में शायरी करो, लेकिन संतों एवं ऋषियों को तो बख्श दो ।