कुंद होने लगी बसपा के तेवरों की धार
तीखे तेवरों वाला हाथी खेमा पड़ा सुस्त
बहन जी के हुक्म के बिना चाहते हुए भी बसपाई नहीं खोलते मुंह
गाजियाबाद । सत्ता पक्ष के विरोध में हमेशा पूरे दमखम से सड़कों पर उतरने वाली हाथी वाली पार्टी के नेता ऐसे समय में चुप है जब सपा कांग्रेस जनहित के मुद्दों को लेकर हर रोज सत्ताधारी भाजपा सरकार को आड़े हाथों लेकर धरना प्रदर्शन कर रही है। हाथी खेमे से पूछो तो बहन जी के आदेशों के बिना कुछ नहीं कर सकते का जवाब मिलता है। यही वजह है कि बसपा नेताओं समर्थकों का जोश जवाब दे रहा है। पेट्रोल डीजल बिजली तमाम ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें विपक्ष अपने स्तर से भुना सकता है, क्योंकि यह वह बुनियादी जरूरतें हैं जिसकी हर आम खास को दरकार है। यही वजह है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव और कांग्रेस प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने डीजल पेट्रोल गैस बिजली की मार झेल रहे आम आदमी की समस्याओं को लपक कर विरोध शुरू कर दिया। लेकिन इन्ही जनहित से जुड़े मुद्दों पर बसपा प्रमुख मायावती ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी सिवाय इसके कि भाजपा कांग्रेस एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। बता दें कि पूर्व में जिन तेवरों के साथ बसपा सियासी मैदान ए जंग में कूदी थी, धीरे-धीरे वह धार कुंद होती जा रही है।
गाजियाबाद में पूर्व जिलाध्यक्ष प्यारेलाल जाटव, रामप्रसाद प्रधान, प्रदीप जाटव, प्रेमचंद भारती, पूर्व विधायक अमरपाल शर्मा, सतपाल चौधरी जैसे नेताओं की एक आवाज पर महानगर की सड़कें नीले झंडे से पट जाती थी। मगर आज के कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा पड़ता जा रहा है। ना शीर्ष नेतृत्व में दम दिख रहा है और ना ही कार्यकर्ताओं में। दबी जुबान पार्टी नेता ही अपनी मुखिया की मुखालफत करने से गुरेज नहीं करते, क्योंकि बहन जी को शायद कहीं ना कहीं सीबीआई का डर सता रहा है। जबकि सपा कांग्रेस बसपा की तर्ज पर संगठन के पेचकस रही है। 2022 चुनाव में अभी 2 साल बाकी है। लेकिन दोनों पार्टियों के तेवरों से साफ लग रहा है कि वह इस मौके को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते। क्योंकि यही वह समय है जब परेशान जनता की दुखती नब्ज को पकड़कर उसका उपचार किया जा सकता है। देश का हर नागरिक कोरोना से जंग लड़ ही रहा है। लॉकडाउन में अपनी जीविका कैसे चलाएं सोचकर आधा हो रहा है।
बता दें कि डीजल-पेट्रोल कोरोना महामारी का दंश सपा बसपा कांग्रेस रालोद सियासी दलों के एसी में बैठे नेता नहीं झेल रहे हर आम खास जूझ रहा है। वह चाहे किसी पार्टी से सरोकार रखता हो या नहीं, समस्या हर किसी के सामने हैं। इन्हीं समस्याओं के खिलाफ लड़ने वाली पार्टी लोगों को हमदर्द के रूप में दिखाई देती है। शायद इसीलिए सपा कांग्रेस रालोद सीटू भाकियू धरना प्रदर्शन कर जनता के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है।लेकिन बसपा का नीला खेमा कोरोना के खौफ से कहे या सत्ताधारी भाजपा की अंदरूनी घुड़की से घर में दुबके हैं। असलियत क्या है यह तो बसपा ही जाने लेकिन इतना जरूर है कि सियासी लाभ उसी को मिलता है जो जनता की समस्याओं की आवाज बनता है।
आपको बता दें यह वहीं भाजपा है जो सत्ता से दूर रहने पर कांग्रेस और सपा बसपा शासनकाल में महिला के सम्मान में भाजपा मैदान में का नारा देकर सड़कों की छाती रौंद रही थी, यह वहीं भाजपा है जो डीजल -पेट्रोल के दामों में वृद्धि पर भैसा बुग्गी पर चढ़कर प्रदर्शन करती थी, यह वहीं भाजपा है जो गैस की कीमतें बढ़ने पर सिलेंडर लेकर हाय तौबा मचाती थी और यह वहीं भाजपा है जो बिजली की दरों में वृद्धि पर सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करती थी पर सत्ता में आने पर सबसे ज्यादा वही मुद्दे भाजपा के लिए मुसीबत बन कर खड़े हो गए, जिनका वह विरोध करती थी। वह चाहे महिला उत्पीड़न की घटनाएं हो या पेट्रोल पदार्थों की कीमतें बिजली की दरें हो या रुपए का निचले स्तर पर जाना, सबकी सब जनता के सामने सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी है।अब देखना होगा कि आगे के 2 सालों में भाजपा इन्हीं मुद्दों पर किस तरह मिट्टी डालकर जनता को भरमाने में कामयाब होती है।