सूखे चने चबाकर देश के लिए मर मिटने की भावना संसार में यदि किसी सेना के भीतर मिलती है तो वह केवल और केवल भारत की सेना के भीतर मिलती है। आज से नहीं सदियों से और सदियों से नहीं बल्कि युग युगों से अपने देश के लिए मर मिटने की भावना भी यदि संसार में किसी सेना के भीतर मिलती है तो वह भी केवल भारतवर्ष की सेना के भीतर ही मिलती है । जी हां , भारतवर्ष की सेना ही वह सेना है जो संसार में मानवतावाद के लिए पहले दिन से लड़ती आई है । इसका इतिहास जितना पुराना है उतना ही इसकी मानवतावाद के लिए किये जाने वाले संघर्षों की गाथा पुरानी है । इसने कभी किसी के सम्मान को चोट पहुंचाने के लिए या किसी पर अपना बलात शासन थोपने के लिए आक्रमण नहीं किया । हां , यदि कहीं पर कोई अत्याचारी पापाचारी कंस या रावण पैदा हो गया तो उसका विनाश कर वहां पर किसी उग्रसेन या किसी विभीषण को अभिषिक्त करने के दृष्टिकोण से समय-समय पर लोकतंत्र की स्थापना के लिए इसने अपनी वीरता का परचम अवश्य लहराया है ।
वास्तव में वीरता की भावना यदि सीखनी है तो वह भी भारत की सेना से ही सीखी जा सकती है क्योंकि वीरता इसी को कहते हैं कि दुष्ट और अत्याचारी शासक का अंत कर प्रजा के कल्याण के लिए मानवतावाद का मार्ग प्रशस्त किया जाए। यही आदर्श लेकर भारत की सेना चलती है । भारत की सेना ने कभी नरसंहार नहीं किए , महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार नहीं किये । बच्चों , बूढ़ों और जवानों का कभी कत्लेआम नहीं किया । इसने कभी किसी एक विचारधारा को परोसने के नाम पर लोगों पर अत्याचार नहीं किए , बल्कि इसने वसुधैव कुटुंबकम की भावना से प्रेरित होकर न्यायपरक युद्ध लड़े हैं । कुरुक्षेत्र की भूमि को धर्मक्षेत्र कहने की परंपरा भारत में वैसे ही नहीं है।
आज लद्दाख में जब शत्रु हमारे सामने खड़ा है तब भारत के सैनिक वहां पर सीना तान कर शत्रु का सामना कर रहे हैं । चीन जैसा चालाक और दुष्ट देश भारत के सैनिकों की वीरता का लोहा मान चुका है । उसने हमारे 20 सैनिकों का बलिदान यदि लिया है तो हमारे सैनिकों ने भी मरते – मरते उसके 50 से अधिक सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया है । जिसे चीन अभी तक स्वीकार नहीं कर रहा है , परंतु उसके टूटते हौसले और सारी दुनिया की ओर से मिली प्रतिक्रिया यह बता रही है कि हमारे सैनिक देश की सीमाओं पर हमें चैन से सोने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने की भावना से प्रेरित होकर वहां खड़े हैं । पूर्वी लद्दाख में सीमा पार से चीन के किसी भी दुस्साहस का जवाब देने के लिए तैयार सेना अपने पांव और पक्के करने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने में जुटी है। भावी चुनौतियों का सामना करने के लिए जवान हथियारों को चुस्त दुरुस्त बनाने के साथ दिन रात बंकर निमार्ण और अस्थायी पुल बनाने का कार्य कर रहे हैं। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है कि वक्त आने पर पूर्वी लद्दाख में सेना के बढ़ते कदम न रुकें। इन सारी तैयारियों को देखकर पता चलता है कि हमारे सैनिक देश की इंच इंच भूमि के लिए लड़ने की तैयारी कर चुके हैं।
पूर्वी लद्दाख के तनावपूर्ण माहौल में सेना के जवान अपनी-अपनी यूनिटों को मिली जिम्मेदारियों का निर्वाह करने के लिए जान की परवाह न करते हुए काम कर रहे हैं। उनके साहस और शौर्य पर पूरे देश को अभिमान है।
पूर्वी लद्दाख के चुनौतीपूर्ण हालात में बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने में भी बहुत जोखिम है। चीनी सेना से खूनी संघर्ष में 20 जवानों के शहीद होने के बाद सेना के दो जवान पुल निमार्ण के दौरान हुए हादसे में भी जान कुर्बान कर चुके हैं। इसके बाद भी सैनिकों के हौसले में कोई कमी नहीं आई है। चीन के ठीक सामने भारतीय सेना के जवान बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं। उनकी इस भावना को देखकर लगता है कि उनका एक ही संकल्प है कि हम दिन चार रहें या ना रहें , तेरा वैभव अमर रहे मां।
युद्ध के लिए सेना की इन्फैंट्री व आर्म्ड रेजीमेंटों के साथ पूर्वी लद्दाख में सेना की इंजीनियरिंग रेजीमेंट बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाकर चीन को चुनौती दे रही हैं। गत दिनों गलवन में पुल निमार्ण के दौरान शहीद होने वाला पंजाब के पटियाला के लांस नायक सलीम खान सेना की इंजीनियरिंग रेजीमेंट के थे। खान के साथ मालेगांव के नायक सचिन विक्रम मोरे ने भी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर निर्माण के दौरान वीरगति पाई थी।
इस बार 1962 से लेकर अब तक के सारे हिसाब को हमारी सेना पाक साफ करने के लिए चीन की बॉर्डर पर खड़ी है । वह शत्रु को ललकार रही है कि यदि साहस है तो सामना कर और अब तक के अपने सारे गुनाहों और पापों का हिसाब पूरा कर ले । शत्रु घिर चुका है और उसे अपनी औकात की पता चल गई है । सारे संसार के अधिकांश देशों का भारत के साथ समर्थन होना यह स्पष्ट कर रहा है कि धर्म किसकी तरफ है और अंत में जीत किसकी होगी ?
सेना के सेवानिवृत मेजर जनरल जीएस जम्वाल का कहना है कि सैनिकों का बुलंद हौसला भारतीय सेना की असली ताकत है। वे किसी भी प्रकार के हालात में लड़ सकते हैं। जम्वाल ने कहा कि भारतीय सेना के सामने जब भी कोई बड़ी चुनौती आती है तो वह किसी भी प्रकार की कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटते हैं। यही कारण है कि पूर्वी लद्दाख में इस समय मौजूद सेना की हर यूनिट अपने अपने तरीके से दुश्मन को मिट्टी में मिलाने की तैयारी कर रही है।
सारे देश की जनता अपने सैनिकों के साथ है। जितनी सांसे हमारे सैनिक अपने देश के लिए ले लेकर अपने महान पुरुषार्थ में लगे हुए हैं , उनसे करोड़ों गुणा सांसें उनके लिए दुआएं कर रही हैं कि वे सही सलामत रहें और अपने मनोरथ में पूर्ण होकर लौटें । सारा देश के लिए स्वागत गान और स्वागत थाल सजा रहा है।(साभार)
राकेश कुमार आर्य
स्वतंत्र लेखक एंव ब्लॉगर