Dainik Athah

चुनावों ने खोली सपा- रालोद- कांग्रेस समेत सभी विरोधी दलों की पोल

– जिला पंचायत अध्यक्ष के बाद ब्लाक प्रमुख
– ढूंढे से नहीं मिल पाये सभी दलों को प्रत्याशी
– मुख्य विपक्षी दल सपा की यह हालत तो कांग्रेस वैसे ही पीछे है

अशोक ओझा
गाजियाबाद। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनावों के बाद हुए ब्लाक प्रमुख चुनाव ने जिले में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के साथ ही राष्टÑीय लोकदल एवं कांग्रेस की भी पोल खोल कर रख दी। इन दलों के अध्यक्षों ने साबित कर दिया कि उनकी न मतदाताओं पर पकड़ एवं न ही पार्टी के कार्यकर्ताओं पर।
बता दें कि जिला पंचायत अध्यक्ष चुनावों में सपा- रालोद गठबंधन ने बसपा से निलंबित विधायक असलम चौधरी की पत्नी नसीम को मैदान में उतारा था। लेकिन नामांकन वाले दिन सपा- रालोद के पास नसीम के साथ ही दया के वोट रह गये। इन दोनों दलों के साथ ही बसपा के वोट नोटों की चकाचौंध में घरों की तो बात ही दूर है जिले व प्रदेश से बाहर चले गये। कोई पहाड़ों की वादियों में अपने परिवार के साथ घूमने गये तो कोई गोवा के समुद्र में नहाकर पांच सितारा होटल में आराम फरमा रहे थे। सपा कार्यकर्ताओं ने एक वोट उठाने के बाद जब हल्ला मचाया तो वह केवल दिखाने एवं अपनी कुर्सियों को बचाने का नाटक भर था।


इसके बाद हुए ब्लाक प्रमुख चुनाव ने सपा के साथ ही रालोद एवं कांग्रेस को भी उनके घर में समेट दिया। इन दलों को जिले के चारों ब्लाकों में एक अदद प्रत्याशी तक नसीब नहीं हुआ। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे इन दलों के कर्ताधर्ता से क्या उम्मीद की जा सकती है। इन सभी दलों के जिला व महानगर अध्यक्षों ने कोई छोटा सा प्रयास तक नहीं किया कि ब्लाक प्रमुख चुनावों में अपनी उपस्थिति तक दर्ज करा पाते। यहीं कारण है कि जिले में दो ब्लाक प्रमुख रजापुर एवं भोजपुर में भाजपा प्रत्याशी निर्विरोध विजयी हो गये। जबकि दो ब्लाक में कांटे का संघर्ष था। लोनी में तो भाजपा का टिकट न मिलने पर एक प्रत्याशी निर्दलीय ही मैदान में था। जबकि मुरादनगर में तो बसपा से निष्कासित को भाजपा के साथ ही सभी दलों के लोग मिलकर लड़ा रहे थे। इसमें भी इन दलों के अध्यक्षों की कोई भूमिका नजर नहीं आई।
रालोद के संबंध में इतना अवश्य कहा जा सकता है कि उसके दोनों अध्यक्ष नये थे। हालांकि मोदीनगर के पूर्व विधायक सुदेश शर्मा ने भी एक प्रयास अवश्य किया, जिसे भाजपा ने विफल कर दिया।
बसपा प्रमुख ने तो स्वयं कह दिया था कि उन्हें ये चुनाव लड़ने ही नहीं थे। इस स्थिति में सबसे बड़ा संकट सपा- रालोद एवं कांग्रेस के सामने है। ये दल विधानसभा चुनाव की तैयारियां कैसे कर पायेंगे यह देखना होगा।

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