गाजियाबाद नगर निगम द्वारा गृह कर में की जा रही 15 फीसद वृद्धि ने भाजपा संगठन के साथ ही विधायकों को भी बेचैन कर दिया है। शायद यहीं कारण है कि संगठन की पहल पर महानगर के सभी जन प्रतिनिधि एक साथ बैठे। लेकिन इस बैठक में न तो गाजियाबाद के सांसद मौजूद थे एवं न ही राज्यसभा सदस्य। इतना ही नहीं विधान परिषद भी बैठक में नहीं थे। आखिर ये तीनों क्यों नहीं थे यह बात तो संगठन के महानगर अध्यक्ष ही बेहतर बता सकते हैं।
लेकिन जिस बैठक में तीनों विधायक एवं महापौर हो उसमें तीनों की गैर हाजिरी कुछ खटक रही है। यह खटकन भी आवश्यक है। इसका सीधा कारण आम जनता से जुड़ा है। हालांकि बैठक का मुद्दा पूरी तरह से जनहित में था। एक तो कोरोना काल में आम से खास तक की हालत खराब है। ऐसे में किस प्रकार आम जनता यह बोझ सहन कर पायेगी सबसे बड़ा सवाल यहीं है। जिस प्रकार संगठन एवं तीनों विधायकों के गृह कर मामले में सुर एक थे उससे निश्चित ही नगर निगम पर वृद्धि को घटाने अथवा कुछ समय के लिए टालने के लिए दबाव बना है। हालांकि इस मामले को सभी लोग बाबा तक से हस्तक्षेप की मांग करें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये। भाजपा को लगता है कि यह मुद्दा आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्ष का हथियार भी बन सकता है। लेकिन दोनों सांसदों के साथ ही एमएलसी को भी इसमें शामिल किया जाता तो दबाव अधिक बढ़ता। इस बैठक के बाद नगर निगम में बैठे आईएएस अधिकारी अर्थात नगर आयुक्त के साथ ही महापौर पर भी दबाव बढ़ा है। जिस प्रकार दोनों में जुगलबंदी है इसे देखते उम्मीद की जानी चाहिये कि निर्णय जनता के हित में आयें।