Dainik Athah

गंगा दशहरा पर जाम से जूझते रहे लोग, यातायात पुलिस थपथपा रही खुद की पीठ

  • गाजियाबाद कमिश्नरेट पुलिस के हाल ‘इसे कहते हैं अपने मुंह मियां मिट्ठू’
  • पुलिस का दावा डीसीपी ग्रामीण और अपर पुलिस आयुक्त यातायात लगातार रहे भ्रमणशील

अशोक ओझा
अभी गुरूवार की ही बात है जिस दिन गंगा दशहरा अथवा ज्येष्ठ दशहरा का पर्व था। इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा स्रान के लिए जाते हैं। सनातन धर्म में कहा जाता है कि गंगा दशहरे पर गंगा स्रान का बड़ा महत्व है। इस दिन जहां जहां गंगा किनारे श्रद्धालु जुटते हैं वहां पर पुलिस और प्रशासन व्यापक तैयारियां करते हैं। जैसे मोटर बोट, तैराकों, यातायात व्यवस्था के नियंत्रण का। इस बार भी गंगा दशहरा पर्व पर गाजियाबाद जिले के मुरादनगर गंग नहर पर जिसे छोटा हरिद्वार का नाम दिया गया है हजारों की संख्या में श्रद्धालु गंगा स्रान के लिए जुटे थे। लेकिन यहां पर पुलिस और यातायात पुलिस की व्यवस्था नाकाफी थी जिस कारण लोगों को असुविधाओं का सामना करना पड़ा।

गंग नहर पर हालात यह थे कि लोगों को सुबह से लेकर शाम तक भारी जाम से दो चार होना पड़ा। यदि पुलिस सूत्रों पर भरोसा करें तो मुरादनगर थाना पुलिस ने यातायात पुलिस से कांस्टेबल, हैड कांस्टेबल और उप निरीक्षक मांगे गये थे जिन्हें थाना पुलिस को उपलब्ध करवा दिये गये थे। इसके बाद यातायात पुलिस के उच्चाधिकारियों की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। लेकिन मुरादनगर थाना अथवा संबंधित एसीपी और डीसीपी ने इनकी ड्यूटी कहां लगाई यह हालात देखते हुए कहा जा सकता है कि अधिकांश आराम की मुद्रा में थे।

अपर पुलिस उपायुक्त यातायात का दावा और हकीकत
अब बात करते हैं अपर पुलिस उपायुक्त यातायात की। उन्होंने शुक्रवार को प्रेस नोट जारी कर दावा किया कि ज्येष्ठ गंगा दशहरा को सकुशल संपन्न करवाय गया। दावा किया गया कि वे स्वयं और डीसीपी ग्रामीण भी लगातार भ्रमणशील रहे। इसके साथ ही यातायात डायवर्जन भी करवाया गया था। आपको बता दें कि मैंने जब अपर पुलिस आयुक्त यातायात को गुरूवार को दोपहर 1.58 मिनिट पर फोन कर जाम की स्थिति की जानकारी दी तो उनका जवाब था कि दिखवाते हैं। जबकि शुक्रवार के दैनिक अथाह के साथ ही अन्य समाचार पत्रों में छपे फोटो पुलिस के दावे को झुठलाते हैं। यदि यातायात डायवर्ट किया जाता अथवा उच्चाधिकारी भ्रमणशील रहते तो लोगों को शायद जाम से नहीं जूझना पड़ता। अब पुलिस कमिश्नर साहब को खुद ही संज्ञान लेना चाहिये कि हकीकत क्या थी। इससे तो यह भी पता चलता है कि प्रेस नोट भी गलत होते हैं और उनका पोस्टमार्टम भी होना चाहिये।


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