स्वतंत्रता सेनानी की यादों को सहेजने में जुटा विदेश मंत्रालय
विदेश सचिव और थल सेना प्रमुख ने म्यांमार की स्टेट काउंसलर से की चर्चा
अथाह संवाददाता,नई दिल्ली। भारतीय विदेश मंत्रालय दुनिया के तमाम देशों में भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों का जीर्णोद्धार करने के साथ ही भारतीय महापुरुषों की यादों को भी सहेजने में जुटा है।
इस दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए मंत्रालय ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की म्यांमार के मांडले में प्रतिमा लगाने की योजना बनाई है। विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और थलसेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे 4-5 अक्टूबर को म्यांमार की दो दिवसीय यात्रा पर गए थे।
इस दौरान उनकी म्यांमार की स्टेट काउंसलर दाऊ आंग सान सू की और सशस्त्र बलों के प्रमुख कमांडर सीनियर जनरल मिन आंग लैंग ह्लाइंग से मुलाकात हुई। दोनों पक्षों ने Lokmanya Tilak की 100वीं पुण्यतिथि पर मांडले में उनकी प्रतिमा लगाने की योजना पर चर्चा की।
बताया जा रहा है कि इस चर्चा में म्यांमार ने भी लगभग अपनी सहमति दे दी है। बहुत ही जल्द विदेश मंत्रालय इस योजना पर कार्य भी शुरू कर देगा।
मांडले जेल में लिखी थी गीता रहस्यमध्य म्यांमार में पड़ने वाले मांडले कारावास में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक छह वर्ष तक बंदी थे। वह लकड़ी के बने कमरे में रहते थे, जो तीनों मौसम के प्रतिकूल था। इसी जेल में उन्होंने ‘गीता का रहस्य’ लिखी थी।
Lokmanya Tilak के विचारों से अवगत कराना उद्देश्यविदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि ‘लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनकी शिक्षा और उनके वचन आज भी हर भारतवासी को जोश से भर देते हैं।
”स्वाराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा” का नारा देने वाले Lokmanya Tilak ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई ऊर्जा व दिशा प्रदान की थी। इस वर्ष जब तिलक को उनकी 100वीं पुण्यतिथि पर समूचे देश ने नमन किया, मांडले में उनकी प्रतिमा के स्थापना से देश और दुनिया के लोगों को उनके विचारों से अवगत कराने में सहायता प्राप्त होगी।’