- भाजपा का संगठन पर्व 2024
- यूपी में संघ की आवाज नहीं सुनाई देती भाजपा के जिम्मेदार पदाधिकारियों को
- राष्ट्रीय स्तर पर संघ के मुख्य भूमिका में आने के बाद सभी की नजरें संगठन चुनाव की तरफ लगी
अशोक ओझा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के साथ ही पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी संगठन पर्व 2024 मना रही है। संगठन पर्व का अर्थ संगठन चुनाव से है। भाजपा के संगठन चुनाव में इस बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कितनी होगी यह सवाल सभी के समक्ष मुंह बांये खड़ा है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में संघ की नाराजगी के कारण ही भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा। अब संगठन चुनाव में एक बार फिर से संघ की परीक्षा होगी।
यह सर्व विदित है कि संघ के दर्जनों अनुषांगिक संगठन है। लेकिन राजनीतिक क्षेत्र में भाजपा को संघ का ही पुत्र माना जाता है। ऐसा हो भी क्यों नहीं जब प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री से लेकर अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री भी संघ की पृष्ठ भूमि से आते हों। देखा जाये तो भाजपा में संगठन महामंत्री का पद महत्वपूर्ण है। यह पद संघ के प्रचारकों के पास ही है। इसके साथ ही संघ समय समय पर भाजपा के साथ बैठक कर विचार विमर्श करता है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रदेशों के नेता संघ से ही मार्ग दर्शन प्राप्त करते हैं। संघ में एक वरिष्ठ पदाधिकारी संघ और भाजपा के बीच समन्वय का काम करते हैं। यह समन्वय मुख्यमंत्री स्तर तक होता है।
बावजूद इसके पिछले कुछ समय से भाजपा और संघ में दूरी बढ़ी। इस दूरी का ही कारण रहा कि लोकसभा चुनाव में संघ स्वयं सेवकों को जिस प्रकार काम करना चाहिये था वह नहीं किया। रही सही कसर भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने लोकसभा चुनावों के दौरान पूरी कर दी जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया कि भाजपा अब बड़ी हो गई है और अब आरएसएस की जरूरत नहीं हैं। इस बयान में आग में घी का काम किया और उनके बयान के बाद जहां जहां लोकसभा चुनाव हुआ वहां पर भाजपा को भारी नुकसान हुआ। बाद निकली है तो दूर तलक अर्थात संघ स्वयं सेवकों के घर घर गई और नतीजा सबके सामने है। लेकिन बाद में समन्वय बैठकों के माध्यम से पूरे मामले के ऊपर पानी डालने का काम हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि जिस हरियाणा को सभी हारा हुआ मान चुके थे वहां पर भाजपा ने जबदस्त तरीके से जीत हासिल की। इसके बाद महाराष्टÑ चुनाव में जीत भी संघ की मेहनत का नतीजा माना जा रहा है। लेकिन समय समय पर संघ की उपेक्षा का मुद्दा भी उठता रहा है।
अब जबकि संगठन चुनाव हो रहे हैं उस समय संघ से जुड़े सभी भाजपा नेताओं की नजर संघ पर लगी है। वह इसलिए कि संघ की चाहत को कितना महत्व दिया जायेगा। इसका कारण यह है कि बड़ी संख्या में नेता यहीं चाहते हैं कि संघ की सहमति से ही मंडल अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष, क्षेत्रीय अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष और राष्टÑीय अध्यक्ष का चुनाव हो। संघ में जिम्मेदारी संभाल रहे अधिकारियों की नजर भी इस तरफ लगी है कि उन्हें कितना पूछा जाता है। यदि संघ से विचार विमर्श कर दायित्वों का निर्धारण किया जाता है तो निश्चित ही भाजपा को लाभ होगा। लेकिन यह चुनाव होने के बाद ही दिखेगा कि संघ की इच्छा और सलाह का कितना सम्मान वर्तमान भाजपा पदाधिकारियों ने किया।
