Dainik Athah

देववाणी संस्कृत है सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा, युवा पीढ़ी को इसका अध्ययन करना बहुत जरूरी है-आचार्य शिवकुमार शर्मा

संस्कृत भाषा एक बहुत ही पुरातन और समृद्ध भाषा है, जो संसार की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक  भाषा है, जिसमें एक शब्द का अर्थ अनेक भावों को संकेत करता है। इसके अलावा संस्कृत भाषा का व्याकरण बहुत ही समृद्ध,संयत और वृहद है जो इसे एक बहुत ही विस्तृत व्याकरण तंत्र बनाता है। यह भी एक महान बात है कि संस्कृत भाषा में बहुत से महाकाव्य, ग्रंथ और शास्त्र हैं ।जो मानव समझ को आध्यात्मिक और ज्ञान की ऊंची परंपराओं से जोड़ते हैं। इन सभी कारणों से, संस्कृत भाषा को एक महान भाषा माना जाता है।देववाणी संस्कृत भाषा प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति की पहचान रही है। वैदिक काल अर्थात ऋग्वेद काल में  संस्कृत सर्वोत्कृष्ट भाषा के रूप में पूरे भारत में प्रचलित थी । उस समय के सभी साहित्य चारों वेद, उपनिषद, छ: शास्त्र ,रामायण, महाभारत 18 पुराण आदि सभी संस्कृत  भाषा में लिखे गये हैं।  उन सब को अध्ययन करने से विधिपूर्वक सीखने और स्वाध्याय करने से व्यक्ति विवेकशील और आध्यात्मिक और धर्मानुशासन का पालन करने वाला हो जाता है।संस्कृत का अर्थ है संस्कारित भाषा यह भाषा विश्व की ऐसी एकमात्र अकेली भाषा है जो वर्तमान में भी उसका वही महत्व है जो प्राचीन काल में था ।किंतु हिंदू समाज आज पाश्चात्य संस्कृति से इतना प्रभावित हो रहा है कि अपने मातृभाषा संस्कृत की अवहेलना करके अन्य भाषाओं को सीख रहा है।भारतीय संस्कृति का वर्तमान में पतन का कारण भी यही है ।जबकि अन्य धर्मावलंबी अपने मातृभाषा चाहे उर्दू हो ,अरबी हो, पंजाबी हो अथवा इंग्लिश हो सब अपनी अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता दे करके उसकी गहन अध्ययन, शोध ,संरक्षण और सम्वर्धन कर रहे हैं और एक  हमारे युवा हैं जो इस भाषा को सर्वाधिक वैज्ञानिकी भाषा छोड़कर  दूसरों की भाषा को अपना रहे हैं इसी कारण आज के युवाओं में ना तो संस्कार है उन्हें संस्कृति के प्रति प्रेम है। वैदिक साहित्य में जो संस्कृत भाषा का प्रयोग हुआ है वह महर्षि पाणिनि ने उसको व्याकरणबद्ध करके विशुद्ध साहित्य के रूप में प्रयोग किया है। हर हिंदू परिवारों को इसका अध्ययन करना चाहिए ।उसका स्वाध्याय , चिंतन और अनुशीलन करना चाहिए तभी इसके सार्थकता सिद्ध होगी। क्योंकि जब तक हमें अपने संस्कृति अपनी भाषा अपनी सभ्यता व संस्कृति ज्ञान नहीं होगा तब हम विदेशियों की चाल में फंसते चले जाएंगे । क्योंकि इस समय बहुत ही सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाया जा रहा है, हिंदू धर्म के साहित्य को लेकर और उसके रीति रिवाज को लेकर ।यदि हमने अपने संस्कृत साहित्य और शास्त्र नहीं पढे़ तो उनको उत्तर देना मुश्किल हो जाएगा । बिना संस्कृत साहित्य और धार्मिक ग्रंथो के पढ़े रीति रिवाज व सांस्कृतिक महत्व की बातों का पता नहीं कर सकते और ना ही संस्कृत भाषा का बढ़ावा दे सकते हैं। आज भारत में जितनी भाषाएं हैं और कई विदेशी भाषाएं भी भी  संस्कृत  भाषा से ही निकली हुई है ।अब  हमें अपनी भाषा और संस्कृति की ओर  लौटना होगा ।यदि हम अपनी संस्कृत साहित्य के और  संस्कृत भाषा की ओर नहीं नहीं चल तो तो अन्य धर्मावलंबी भी हमारी युवा पीढियों  को को भटका करके, हमारे शास्त्रों में विक्षेप डाल करके भ्रमित करते रहेंगे ।मैं युवाओं से आह्वान करता हूं कि ज्ञान असीमित है ।जब आप अंग्रेजी भाषा या अन्य विदेशी भारत सीख सकते हैं। उसका भी अवश्य प्रयोग करो, लेकिन अपनी मातृभाषा को मत भूलो ।चाहे वेद मंत्र हो अन्य स्तुतियां हो प्रार्थना हो उसको अवश्य पढ़े। संस्कृत भाषा में स्वर, व्यंजन स्पर्श व्यंजन आदि की जो संस्कारित रूप से व्याख्या की गई है उनके उच्चारण स्थान के मुख के सभी अंगों व तंत्रिकाओं को  पुष्ट करती है ।जैसे स्पर्श व्यंजन में क वर्ग, च वर्ग,  ट वर्ग,  आदि  के जो वर्ण है  उनका उच्चारण स्थान से अगर हम लगातार इसका अभ्यास करेंगे तो हमें  वाणी दोषों से मुक्ति मिलेगी। जैसे  कोई बच्चा हकलाता है ,बोलने में दिक्कत करता है उसका तालु मोटा है तो उसको उन शब्दों का बार-बार उच्चारण करने से बहुत लाभ हो सकता है।इसलिए मेरा आह्वान है  आज की पीढ़ी से  स्थान स्थान पर संस्कृत को अपनी दैनिक उपयोग की भाषा बनाइए। मुस्लिम बच्चा अन्य ज्ञान सीखने से पहले कुरान पढ़ना सीख जाता है।सिक्ख मत के अवलंबी अपना ज्ञान प्राप्त करने से पहले गुरुमुखी  सीख जाते हैं और उसी  गुरु वाणी का पाठ करते हैं। इंग्लिश वाले क्रिश्चियन लोग अपनी मातृभाषा इंग्लिश लिखते हैं। चीनी चीनी भाषा बोलते हैं। जापान जापानी बोलते हैं। और अब हिंदू हम जितने भी हिंदू हैं,हमने हमने अपने आप को अपनी संस्कृति भाषा से दूर कर लिया है। अब हमें अपनी संस्कृत व संस्कृति पर गौरव करना होगा। अपनी युवा पीढ़ी को बचपन में ही संस्कृत भाषा  को सिखाना होगा और भाषाओं को सीखने के साथ-साथ संस्कृत भाषा का भी अध्ययन, स्वाध्याय, प्रचार ,प्रसार सम्वर्धन करना होगा।आचार्य शिवकुमार शर्मा ज्योतिष आचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट उप प्रधानाचार्य, सरस्वती शिशु मंदिर नेहरू गाजियाबाद

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