होली से 8 दिन पहले होलाष्टक आरंभ हो जाते हैं। होलाष्टक का पौराणिक आख्यान जब विष्णु भक्त प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप के कहने के बाद भी भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी। तो दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने विष्णु भक्त प्रह्लाद को तरह-तरह की यातनाएं दी। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक तरह तरह की यातनाओं के द्वारा प्रह्लाद को डराया गया। किंतु दृढ़ प्रतिज्ञ प्रहलाद ने ईश्वर भक्ति नहीं छोड़ी। कभी जहर दिया गया ,कभी पिटारी में विषैला सांप भेजा,कभी पहाड़ी से गिरवाया ,कभी समुद्र में फिकवाया गया। किंतु ईश्वर भक्त प्रह्लाद को बार-बार भगवान विष्णु ने बचाया और होली के दिन तो होलिका ने प्रह्लाद को मारने के लिए अग्नि प्रवेश किया. लेकिन तब भी प्रहलाद बच गये। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक विष्णु भक्त प्रह्लाद को हिरण्यकश्यप कश्यप ने तरह-तरह की यातनाएं दी थी। इस कारण इन आठ दिनों में किसी भी शुभ कार्य के लिए वर्जित कर दिया गया।
इस पौराणिक आख्यान के साथ साथ होली के आसपास मौसम में परिवर्तन होता है और हर मनुष्य के अंदर थोड़ा-थोड़ा आलस्य ,प्रमाद की मात्रा बढ़ जाती है। इसलिए इन दिनों में किए गए शुभ कार्य फलीभूत नहीं होते हैं। वैसे भी कोई भी शुभ कार्य, पूजा पाठ करने के लिए शरीर का ऊजार्वान होना बहुत आवश्यक है, यदि शरीर में आलस्य ,प्रमाद बढ़ जाएगा तो विविध प्रकार की पूजा, अनुष्ठान अपना पूर्ण फल नहीं देंगे।
यही कारण है कि होली से 8 दिन पहले होलाष्टक में 16 संस्कारों से संबंधित कोई भी शुभ कार्य नहीं होता हैं। वैवाहिक कार्य, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य वर्जित हैं ।
नित्य पूजा पाठ दान आदि का निषेध नहीं है। होलाष्टक में नामकरण आदि कर सकते हैं इसमें भी कोई प्रतिबंध नहीं है। धार्मिक आयोजन और नैमित्तिक पूजा-पाठ व जाप भी इन दिनों वर्जित होते हैं। किंतु इन दिनों दान, पुण्य ,गरीबों के सेवा व असहाय लोगों को भोजन कराना बहुत शुभ माना गया है। इस बार 17 मार्च से 24 मार्च तक होलाष्टक रहेंगे। होलाष्टक 8 दिन के होते हैं। होली दहन के साथ ही होलाष्टक समाप्त हो जाते हैं।