- कांता कर्दम, विजय पाल तोमर, अनिल अग्रवाल हुए चारों खाने चित्त
- पश्चिम के नाम पर मथुरा के पूर्व सांसद चौधरी तेजवीर सिंह को ही मिली तव्वजो
- सुधांशु त्रिवेदी ने हर कदम पर मनवाया अपना लोहा, फिर राज्यसभा प्रत्याशी
अशोक ओझा
नयी दिल्ली/ लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश समेत देश के अधिकांश राज्यों से अप्रैल माह में रिक्त हो रही राज्यसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। उत्तर प्रदेश के लिहाज से देखा जाये तो यूपी के राज्यसभा प्रत्याशियों की सूची में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के करीबी और वरिष्ठ राष्टÑीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी को ही फिर से मौका मिला है। इस सूची में रालोद से भाजपा के गठबंधन का असर भी स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है। इसके साथ ही पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री कुंवर आरपीएन सिंह को भी तव्वजो मिली है।
बता दें कि दो अप्रैल को यूपी से जिन राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है उनमें भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष कांता कर्दम, जाट समाज से आने वाले विजय पाल सिंह तोमर, गाजियाबाद के अनिल अग्रवाल, अनिल जैन के साथ ही सुधांशु त्रिवेदी का नाम प्रमुख है। सुधांशु त्रिवेदी को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का करीबी तो माना ही जाता है साथ ही वे सभी मंचों से भाजपा का पक्ष तार्किक रूप से रखने में माहिर है। सुधांशु भाजपा प्रवक्ताओं में ऐसा नाम है जिनके एक एक शब्द नपे तुले होते हैं। हिंदी के साथ ही साहित्य और धर्म संबंधी मामलों में उनकी मजबूत पकड़ जग जाहिर है। उन्होंने भाजपा में अपना अलग स्थान बनाया है। यहीं कारण है कि उन्हें एक और कार्यकाल दिया गया है।
अब यदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो रालोद से गठबंधन ने भाजपा के राज्यसभा सदस्यों को हाशिये पर पहुंचा दिया। विजय पाल तोमर, कांता कर्दम, अनिल अग्रवाल ऐसे नाम है जिनको दोबारा मौका नहीं दिया गया है। भाजपा सूत्रों के अनुसार अनुसूचित जाति से आने वाली कांता कर्दम पार्टी की प्रदेश उपाध्यक्ष है। दो दो चुनाव हारने के बावजूद उन्हें राज्यसभा भेजा गया। लेकिन वे अपने काम से पार्टी में कोई छाप छोड़ने में विफल रही। जबकि उनके पास खुद को साबित करने के लिए बड़ा क्षेत्र था। ठीक ऐसी ही स्थिति विजय पाल तोमर की रही। जाट समाज से आने वाले तोमर भी जाट लैंड कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने को जाट नेता साबित करने में सफल नहीं रहे। जबकि रालोद के सामने उन्हें खुद को साबित करना चाहिये था।
रही बात अनिल अग्रवाल की तो वे भी क्षेत्र में अपनी धमक साबित करने में पूरी तरह से असफल रहे। वे क्षेत्र में एक गुट विशेष के नेता बन गये। इसके साथ ही गाजियाबाद से सांसद जनरल वीके सिंह से उनकी रार पार्टी में चर्चा का विषय बन गई। सूत्रों की मानें तो अग्रवाल के विरोधियों ने उन्हें पार्टी नेतृत्व के समक्ष पार्टी में गुटबाजी बढ़ाने का दोषी ठहरा दिया। हालांकि वे लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। इसके साथ ही अधिकांश जनप्रतिनिधियों से भी उनके संबंध बेहतर है।
भाजपा सूत्रों की मानें तो पश्चिम में रालोद से गठबंधन होने के कारण भाजपा को यह लगता है कि जो नेता खुद को साबित नहीं कर पाये उन्हें फिर से मौका देने का कोई लाभ नहीं है। पार्टी का यह भी मानना है कि अपने अपने वर्ग में ये नेता छाप छोड़ने के साथ अपने समाज को पार्टी से जोड़ने में भी विफल रहे हैं। अब देखना होगा कि लोकसभा चुनाव के बाद होने वाले राज्यसभा चुनाव में क्या ये नेता फिर से राज्यसभा में जा पायेंगे।