- समिति ने चौबीस घंटे में यथा स्थिति बहाल कर प्रमाण किए प्रस्तुत
- राष्ट्रीयकृत बैंककर्मी एवं मित्रगण सहकारी आवास समिति लिमिटेड के क्रियाकलाप संदेह के दायरे में
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। राष्ट्रीयकृत बैंककर्मी एवं मित्रगण सहकारी आवास समिति लिमिटेड के क्रियाकलापों की खबर प्रकाशित होने के बाद प्रशासन ने जहां तत्काल इसका संज्ञान लिया, वहीं समिति के पदाधिकारी भी प्रशासनिक दखल के बाद बैक फुट पर आ गए। गौरतलब है कि दैनिक अथाह ने अपने गुरुवार के अंक में “प्रशासनिक चेतावनी से खिलवाड़ किसी बड़े घोटाले का संकेत तो नहीं है” शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी।
खबर में प्रशासन की उस चेतावनी का हवाला था जो प्रशासनिक तौर पर तहसीलदार गाजियाबाद द्वारा समिति की कॉलोनी के गेट पर बोर्ड में लिखित रूप से प्रदर्शित की गई थी। तहसीलदार की यह चेतावनी यह आशंका उत्पन्न करने के लिए प्रयाप्त है कि समिति के क्रिया-कलाप संदिग्ध हैं। खबर प्रकाशन के तत्काल बाद जिलाधिकारी एवं जीडीए उपाध्यक्ष राकेश कुमार सिंह द्वारा इस प्रकरण का तत्काल संज्ञान लिया गया। श्री सिंह के सख्त तेवरों के चलते समिति के पदाधिकारियों ने चौबीस घंटे के भीतर ही चेतावनी का बोर्ड कॉलोनी के गेट पर पुनः बहाल कर दिया। गौरतलब है कि श्री सिंह द्वारा खबर का संज्ञान लेने के साथ ही समिति का कामकाज भी जिलाधिकारी के रडार पर आ गया था। खबर प्रकाशन के चंद घंटे बाद ही समिति की ओर से जिलाधिकारी को अवगत करवाया गया कि गुरुवार शाम तक पूर्व की स्थिति बहाल हो जाएगी।
यही नहीं गुरुवार देर शाम समिति की रिहायशी कॉलोनी के बाहर लगे सूचना पट को यथा स्थिति में लाए जाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई। इतना ही नहीं समिति की ओर से जिलाधिकारी महोदय को अवगत करवाया गया- “सर इस इश्यू में आज बोर्ड का बेस पेंट कर दिया गया था, लेकिन गीला होने के कारण उस पर लिखा नहीं जा पाया। कल लिखवा देंगे।” प्रमाण के तौर पर समिति द्वारा सूचनापट को पेंट किए जाने के फोटो भी प्रेषित किए गए। समाचार लिखे जाने तक (शुक्रवार की शाम को) इस बात के प्रमाण भी मिल गए कि समिति की ओर से मिटाई गई तहसीलदार की चेतावनी बोर्ड पर पुनः अंकित कर दी गई।
इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट हो गया है कि समिति के क्रियाकलापों की दाल में कुछ तो काला है। जिसे प्रशासन व आम जनता की आंखों में धूल झोंक कर सफेद करने की कोशिश की जा रही थी। और अब… जब बोर्ड पर प्रशासनिक चेतावनी समिति द्वारा स्वयं पुनः दर्ज करवाई गई है तो इस बात की संभावना और प्रबल हो गई है कि समिति का दामन साफ नहीं है। समिति का दामन दागदार न होता तो चेतावनी का बोर्ड आनन-फानन में पुनः बहाल नहीं किया जाता। अब जब पोत दिए गए सूचनापट को पुनः चेतावनी से बहाल कर दिया गया है तो, इस पूरे प्रकरण और समिति पर लगे आरोपों की पड़ताल भी होनी चाहिए। समझा जा सकता है कि जिलाधिकारी द्वारा संज्ञान लेने के बाद इस प्रकरण में दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा।