एकादशी व्रत की श्रृंखला में मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी उत्पत्ति एकादशी अथवा उत्पन्ना एकादशी के नाम से जानी जाती है । इस माह यह एकादशी व्रत 8 दिसंबर को शुक्रवार को रखा जाएगा ।शुक्रवार को एकादशी अगले सूर्यास्त से पहले समाप्त हो जाएगी ।उसके बाद द्वादशी तिथि आरंभ होगी ।इसलिए द्वादशी विधि एकादशी का व्रत करने से एकादशी व्रत का शुभ फल मिलता है।पौराणिक कहानियों के अनुसार सतयुग में मुर नमक भयंकर राक्षस था। उसके अत्याचारों से देवता लोग कांपते थे ।उसने अपने पराक्रम से देवलोक पर अधिकार कर लिया था। और सारे देवगण देव लोक को छोड़कर पृथ्वी पर इधर-उधर विचरण करने लगे। तत्पश्चात इंद्र ने सभी देवताओं के साथ जाकर भगवान विष्णु को अपने दुख का वृत्तांत सुनाया।देवताओं ने भगवान विष्णु को मुर नामक के राक्षस के अत्याचारों के बारे में बताया। भगवान ने संकल्प किया कि मैं उसका वध करूंगा और उन्होंने मुर को युद्ध के लिए ललकारा । कहा जाता है कि युद्ध करते हुए भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या उत्पन्न हुई और कन्या दिव्य और चतुर्भुजाकार थी उसके हाथों में अस्त्र-शस्त्र थे ।उसे दिव्या आकृति की कन्या ने कहा कि मेरे हाथ से ही इस मोर नामक राक्षस का वध होगा। ऐसा कहते ही उसने मुर को ललकारा और देखते देखते उसका प्राणान्त कर दिया। क्योंकि वह कन्या भगवान विष्णु के शरीर से दिव्य रूप में उत्पन्न हुई थी। इसलिए उसका नाम भगवान विष्णु ने उत्पन्ना एकादशी अथवा उत्पत्ति रख दिया।उत्पन्ना एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है ।कहा जाता है कि इस व्रत को करने से पूर्व जन्म में किए गए अशुभ कर्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और शुभ गति प्राप्त करता है।प्रातः काल उठ करके एकादशी व्रत का संकल्प करें। मध्यान्ह में विष्णु भगवान के साथ लक्ष्मी जी की पूजा करें ।लक्ष्मी सूक्त ,लक्ष्मी चालीसा, एकादशी कहानी सुने और विष्णु सहस्त्रनाम विष्णु चालीसा आदि पढ़े।भगवान को भोग लगाएं और शाम तक निराहार रहे बीच में चाहे तो थोड़ा सा अल्पाहार अर्थात चाय आदि पी सकते हैं। अगले दिन प्रात :काल व्रत का पारायण करे तो भगवान प्रसन्न होकर के मनोकामना पूर्ण करते हैं ।
आचार्य शिवकुमार शर्मा, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट