Dainik Athah

जिला- क्षेत्र कमेटी के पुनर्गठन से हो सकती है विरोधियों को शांत करने की कवायद

  • नवरात्र तक करना पड़ सकता है भाजपा कमेटियों के पुनर्गठन इंतजार
  • सभी कमेटियों में दिख सकता है बड़ा बदलाव, विरोधियों को किया जा सकता है किनारे
  • नवरात्र में है कमेटियों के पुनर्गठन का शुभ मुहूर्त

अथाह संवाददाता
गाजियाबाद
। जिला और महानगर अध्यक्षों की घोषणा होने के बाद अब भाजपा कार्यकर्ताओं की नजरें इन कमेटियों के साथ ही क्षेत्रीय कमेटी के पुनर्गठन पर टिकी हुई है। भारतीय जनता पार्टी भी जहां पुनर्गठन से विरोधियों को शांत कर सकती है, वहीं दूसरी तरफ अध्यक्षों के विरोधियों को किनारे भी किया जा सकता है।
बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने सितंबर में जिला व महानगर अध्यक्षों की घोषणा कर दी थी। इस बदलाव का असर सबसे अधिक गाजियाबाद जिले पर नजर आ रहा है। जिले में पुरानी कमेटी के अधिकांश पदाधिकारी नये अध्यक्ष के पदभार ग्रहण करने के बाद से निष्क्रिय हो गये हैं। खासकर वे लोग जो जिलाध्यक्ष पद की दौड़ में आगे चल रहे थे। इनका कहना है कि जिलाध्यक्ष बनाने के साथ ही पार्टी नेतृत्व ने जिला भाजपा की कमान एक प्रकार से एक विधायक के हाथों में सौंप दी हैं। इसके साथ ही यह आशंका भी जताई जा रही है कि जिस प्रकार के परिणाम नगर निकाय चुनाव में मोदीनगर को छोड़कर अन्य स्थानों पर नजर आये कहीं उसकी पुनरावृति लोकसभा चुनाव में न हो जाये।
हालात जिले में यह है कि मोदीनगर क्षेत्र के ही पदाधिकारी सक्रिय है, जबकि लोनी समेत अन्य क्षेत्रों के कार्यकर्ता निष्क्रिय हो चुके हैं। इस स्थिति में पार्टी के आयाम भी बमुश्किल पूरे हो पा रहे हैं।
यदि गाजियाबाद महानगर को लें तो पुराने अध्यक्ष की फिर से ताजपोशी होने से उनके विरोधियों को झटका लगा है। लेकिन अध्यक्ष अपने मजबूत विरोधियों को साधने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसमें वे कितने सफल होते हैं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। भाजपा सूत्रों के अनुसार महानगर कमेटी के पुनर्गठन में निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को किनारे किया जा सकता है। अनेक पदाधिकारी ऐसे हैं जो पद लेने के बाद भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। ऐसे में इस बार उनके पर कतरे जायेंगे इसकी पूरी संभावना है।
अब बात करें क्षेत्रीय कमेटी की तो पश्चिमी क्षेत्र के अध्यक्ष कमेटी में अपनी पसंद के लोगों को स्थान देंगे। जो पदाधिकारी साजिशें रच रहे हैं उन्हें किनारे लगाया जा सकता है। इसके साथ ही जिलाध्यक्ष एवं महानगर अध्यक्ष पद की दौड़ में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों के मजबूत एवं समर्पित कार्यकर्ताओं को स्थान दिया जा सकता है। कमेटी में लंबे समय से पदों पर काबिज कार्यकर्ताआें को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। इसमें भी विभिन्न जिलों के जातीय गणित को ध्यान में रखा जायेगा। हालांकि कमेटियों में बदलाव के लिए कार्यकर्ताओं को कम से कम नवरात्र तक इंतजार करना पड़ सकता है। इस मामले में क्षेत्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह सिसौदिया पूरी तरह से चुप्पी साधे हैं।


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