कविता देखना जिस दिन ये परिंदा उड़ान भर लेगा, ये धरती ही नहीं ये आसमान बदलेगा। अभी तो ये गंभीर मनन मुद्रा में है लगता है अभी गहरी निद्रा में है। इसकी निद्रा को तुमने जो तोड़ा, उठते ही इसने जो दीपक को जोड़ा। देखना ,उजाला भी अपनी पहचान बदलेगा, ये धरती ही नहीं आसमान बदलेगा।। छिपाएं है विचारों में ज्वाला की ज्योति, हजारों सिमेटे है हृदय में मोती । व्यवस्थाओं का चक्र यदि इस पर चोट कर गया, प्रेम का हृदय यदि विद्रोह कर गया। तो प्यार का हर आयाम बदलेगा , ये धरती ही नहीं आसमान बदलेगा।। ये शांत पर्वत की घाटी का पानी, सिमेटे है हृदय में भयंकर कहानी । इस शांत घाटी को जो तुमने सताया, ये ह्रदय का तूफान जो किनारे पर आया। देखना ,हर किनारा भी अपनी पहचान बदलेगा, ये धरती ही नहीं आसमान बदलेगा। सामाजिक योग ही नहीं, गुणाओ का मान बदलेगा। देखना जिस दिन यह परिंदा उड़ान भर लेगा। ये धरती ही नहीं आसमान बदलेगा।।
कवि : डॉ. प्रेम किशोर शर्मा “निडर”
कविता—————————————————————Kativa