कविता
नदिया धीरे धीरे बहना, नदिया होले होले बहना
नदिया धीरे धीरे बहना
नदिया धीरे धीरे ।
कितनी चट्टानों से गिरना ,कितनी अवरोधों को सहना
फिर भी हंसते हंसते बहना
नदिया धीरे धीरे बहना
नदिया धीरे धीरे।
कितनी नगर बस्ती होंगी, कितने ही होंगे श्मशान
कितने जंगल हरे-भरे कितने ही होंगे सुनसान
नदिया होकर सम तुम बहना
नदिया धीरे धीरे बहना
नदिया होले होले बहना।
एक तरफ घाटों पर ,श्रद्धा तुझको शीश झुकाएगी
भौतिकता का पहन के चोला वो अपशिष्ट बहाएगी
नदियां किसी से कुछ ना कहना
नदिया दुख लेकर भी बहना
नदिया धीरे धीरे बहना
नदिया धीरे धीरे।
तटबंधों की मयार्दा से ,कहीं बांध की बाधाओं से
तू तनिक ना विचलित होना
नदिया धीरे धीरे बहना
नदिया धीरे धीरे।
कहीं खेत खलियान मिलेंगे मेहनतकश इंसान मिलेंगे
श्रम से झरा पसीना लेकर सागर को तू देना
नदिया धीरे धीरे बहना
नदिया होले होले बहना
नदिया धीरे धीरे।
बाह फैलाकर सागर तुझको अपने अंग लगाएगा।
तेरा हर संताप हो प्यारी क्षण भर में मिट जाएगा।
नदिया मीठी खारी बहना
नदिया किसी से कुछ ना कहना
नदिया धीरे धीरे बहना
नदिया धीरे धीरे।
कवि : डॉ. प्रेम किशोर शर्मा ‘निडर’
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