हाईवोल्टेज ड्रामे का पटाक्षेप : पूर्व सचिव फर्जी भू-आवंटन घोटाले के आरोपों से हुए मुक्त
अदम पैरवी के अभाव में हाई कोर्ट ने निरस्त की विधायक की याचिका
आलोक यात्री
गाजियाबाद। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के पूर्व सचिव एवं देश के सर्वोच्च सदन के सदस्य को फर्जी भू-आवंटन के कथित आरोप से बड़ी राहत मिल गई है। विधायक द्वारा उनके खिलाफ दायर की गई याचिका को न्यायालय ने खारिज कर दिया है। भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि याचिकाकर्ता के केस की पैरवी न करने के चलते उनके द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी गई। गौरतलब है कि सूबे की विधानसभा के पूर्व सदस्य रविंद्र कुमार ने जीडीए के पूर्व सचिव के खिलाफ इंदिरापुरम आवासीय योजना में अपने रिश्तेदारों के नाम फर्जी तरीके से भू आवंटन का आरोप लगाते हुए वर्ष 2012 में हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी।
गौरतलब है कि बीते माह हाईकोर्ट में इस प्रकरण में सुनवाई की तारीख लगी तो बोतल में बंद जिन बाहर आ गया। आनन-फानन में इन आवंटन और इस प्रकरण से जुड़ी फाइलें खंगाली गईं। इस प्रकरण के प्रकाश में आने के बाद से मौजूदा समय तक की गई तमाम जांच आख्या शासन को पहले भी भेजे जाने के बाद जांच एक बार पुन: शुरू की गई। इस जांच का नतीजा आना अभी बाकी है। प्राधिकरण सूत्रों का कहना है कि अधिकांश जांचों में पूर्व सचिव को आरोप मुक्त घोषित किया जा चुका था। लेकिन बीते माह शासन की ओर से हाईकोर्ट में पैरवी के निर्देश के बाद प्राधिकरण के मौजूदा अधिकारियों ने आवंटन से जुड़ी फाइलें फिर खंगालनी शुरू कर दी थीं। यही नहीं अखबारों में इशतिहार के जरिए इंदिरापुरम के इन आवंटियों से मूल दस्तावेज भी तलब किए गए थे। यही नहीं शासन ने जांच के संकेत मिलते ही प्राधिकरण में ऐसी खलबली मची थी कि एक पूर्व विधि सहायक के खिलाफ अनियमितता बरतने का आरोप लगाते हुए उन्हें आरोप पत्र थमा दिया गया।
जांच में धर्म सिंह यादव, पुष्पा यादव, मिथिलेश शर्मा, अंजू मेहता, गोपीचंद यादव, सुरेश कुमार जुनेजा, संजय कुमार और कमलजीत कौर को लाभार्थी पाया गया था। इन लोगों को पहले वैशाली, कपुर्रीपुरम, हस्तिनापुरम और इंदिरापुरम में भवन व भूखंड आवंटित हुए थे। पूर्व सचिव पर आरोप था कि उन्होंने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए इन भवन व भूखंडों को इंदिरापुरम में भूखंड के रूप में परिवर्तित कर दिया था। जानकारी में आया है कि इस प्रकरण में हाईकोर्ट में 13 फरवरी को सुनवाई होनी थी। बताया जाता है कि याचिकाकर्ता या उसके प्रतिनिधियों द्वारा अदालत में पैरवी के लिए मौजूद न होने पर कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए याचिका निरस्त कर दी। प्राधिकरण के विशेषाधिकारी सुशील कुमार चौबे ने याचिका निरस्त करने की तो पुष्टि की है लेकिन इस प्रकरण में आगे क्या कार्रवाई होगी इस बाबत वह कुछ कहने को तैयार नहीं हुए। अब जबकि याची रविंद्र कुमार की याचिका निरस्त हो गई है और डेढ़ माह से चल रहे हाईवोल्टेज ड्रामे का भी पटाक्षेप हो गया है, तो देखने वाली बात यह है कि इन भूखंडों की आवंटन की जांच का ऊंट किस करवट बैठेगा?