उच्च न्यायालय के आदेश से प्रदेश भर की निकायों में संकट
12 दिसंबर का शासनादेश रद्द होने से शुरू हुआ भुगतान का संकट
इसी आदेश के चलते महापौर- निकाय अध्यक्षों के कार्यकाल पर भी संकट
प्रदेशभर के अधिशासी अधिकारी नये आदेशों का कर रहे हैं इंतजार
अशोक ओझा
लखनऊ/ गाजियाबाद। प्रदेश में उच्च न्यायालय के आदेश के बाद अब महापौर एवं निकाय अध्यक्षों का कार्यकाल क्या समाप्त हो गया है। इसको लेकर उहापोह की स्थिति बन गई है। इसके साथ ही न्यायालय के निर्णय के आदेश के बाद प्रदेशभर के नगर निगमों एवं निकायों में भुगतान रोक दिये गये हैं। भुगतान रुकने के बाद निकाय अध्यक्षों के सामने सबसे अधिक परेशानी देखी जा रही है।
बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर सुनवाई करने के बाद दिये गये निर्णय में उत्तर प्रदेश सरकार के 12 दिसंबर के उस शासनादेश को भी रद्द कर दिया था जिसमें निकायों में प्रशासक की नियुक्ति के आदेश थे। इसी आदेश में यह भी कहा गया था कि नगर निगम, नगर पालिका एवं नगर पंचायत अध्यक्ष का कार्यकाल शपथ ग्रहण के बाद होने वाली पहली बोर्ड बैठक से माना जायेगा। इस आदेश के तहत जिन निकायों की पहली बोर्ड बैठक जब भी हुई थी उसी दिन उस निकाय अध्यक्ष एवं बोर्ड अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त माना जा रहा था। इस आदेश के अनुसार शपथ ग्रहण के बाद 23 जनवरी तक का समय बोर्ड बैठक के लिए दिया गया था।
अब जब 12 दिसंबर का शासनादेश ही न्यायालय ने रद्द कर दिया उस स्थिति में यह भी माना जा रहा है कि प्रदेश के सभी 17 नगर निगमों, 200 नगर पालिका परिषदों एवं 546 नगर पंचायत के महापौर एवं अध्यक्षों के साथ ही बोर्ड का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है। जानकारों की मानें तो नगर पालिका अधिनियम में यह स्पष्ट कहा गया है कि जिस दिन महापौर एवं निकाय अध्यक्ष शपथ लेते हैं उसी दिन से उनका कार्यकाल माना जाये। लेकिन 12 दिसंबर 2022 को हुए शासनादेश में शपथ ग्रहण के बाद पहली बैठक को कार्यकाल माना गया था। उसी कारण प्रदेशभर के सभी महापौर एवं निकाय अध्यक्ष अब तक काम कर रहे थे।
सूत्रों के अनुसार उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ द्वारा अपने निर्णय में 12 दिसंबर का शासनादेश रद्द कर देने के बाद मंगलवार शाम को हुई वीडियो कांफ्रेंस में प्रमुख सचिव नगर विकास अमृत अभिजात ने नगर आयुक्तों के साथ ही अधिशासी अधिकारियों को किसी भी प्रकार का भुगतान न करने के निर्देश दिये। इसका कारण महापौरों एवं निकाय अध्यक्षों के कार्यकाल को लेकर स्थिति स्पष्ट न होना है। निकायों में अधिशासी अधिकारियों ने भुगतान पर ब्रेक लगा दिया है जिसके बाद निकाय अध्यक्षों की टेंशन भी बढ़ गई है। नाम न छापने के अनुरोध के साथ एक अधिशासी अधिकारी कहते हैं कि इस प्रकार निकाय अध्यक्षों का कार्यकाल समाप्त हो गया है।
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सभी निकायों को नये शासनादेश का इंतजार
अब प्रदेश के सभी नगर निगमों के साथ ही निकायों को नये शासनादेश का इंतजार है। शासनादेश आने के बाद ही भुगतान को लेकर स्थिति स्पष्ट हो सकेगी। तब तक निकायों में किसी भी प्रकार का भुगतान नहीं होगा।
15 वें वित्त आयोग के भुगतान की अंतिम तिथि 31 दिसंबर है
प्रदेशभर की निकायों में 15 वें वित्त आयोग के तहत मंजूर हुए विकास कार्यों के भुगतान की अंतिम तिथि 31 दिसंबर है। यह भुगतान भी अब अटक गये हैं। सूत्र बताते हैं कि भुगतान न होने पर भुगतान की अंतिम तिथि को आगे बढ़ाया जा सकता है।