- दैनिक अथाह में प्रकाशित खबर का हुआ असर
- भूखंड की कीमत और अर्थदंड में हुई गणना के खेल को समझना मुश्किल
आलोक यात्री
गाजियाबाद। दैनिक अथाह में सोमवार के अंक में प्रकाशित खबर ‘जीडीए के भ्रष्ट बाबुओं ने एक प्लॉट के बना दिए दो वारिस’ का असर यह हुआ कि जीडीए सचिव ने इस प्रकरण की जांच के आदेश जारी कर दिए। वैशाली के एक भूखंड के दो वारिस खड़े हो जाने की वजह से यह प्रकरण दिलचस्प तो हो ही गया है, इस प्रकरण में एक नया मोड़ यह भी आ गया है कि जिस आवंटी की प्राधिकरण करीब 25 साल पहले रजिस्ट्री कर चुका है उससे अब बकाया के रूप में करीब सात लाख रुपए की मांग की जा रही है। जीडीए सचिव बृजेश कुमार ने इस प्रकरण की जांच के भले ही आदेश दे दिया हों लेकिन दोषी सजा पा पाएंगे इस बात में संदेह है।
वैशाली सेक्टर-4 के भूखंड संख्या 588 के आवंटन की कहानी जितनी दिलचस्प है इसके निस्तारण की कहानी भी निसंदेह कई रहस्यों को उजागर करेगी। गौरतलब है कि नब्बे के दशक में जीडीए ने वैशाली आवासीय योजना की घोषणा की थी। मामले की पड़ताल बताती है कि तत्कालीन उपाध्यक्ष ने योजना में एक भूखंड ब्रजमोहन सिंह के नाम आरक्षित कर दिया था। जिस सिफारशी चिट्ठी पर यह भूखंड आरक्षित किया गया था, उस पर ब्रजमोहन सिंह की कोई वल्दियत या पुख्ता पहचान नहीं थी। सूत्रों के अनुसार यह प्रक्रिया चल ही रही थी कि इसी नाम से एक और असफल आवेदक ब्रजमोहन सिंह पिक्चर में प्रकट हो गए। जीडीए के कंप्यूटर में सिर्फ ब्रजमोहन सिंह का ही नाम दर्ज था। यह कोई नहीं जानता था कि इनमें से कौन सा ब्रजमोहन सिंह पटना का रहने वाला है और कौन सा दिल्ली का?
यह वह दौर था जब डीडीए में ड्रा की प्रक्रिया कंप्यूटर से शुरू हुई थी। आवंटन में आॅपरेटर जम कर धांधली मचाते थे। तत्कालीन उपाध्यक्ष की कथित मेहरबानी की वजह से ब्रजमोहन सिंह के नाम भूखंड आवंटित होने के बाद कंप्यूटर विभाग ने फाइल भूखंड अनुभाग के सुपुर्द कर दी होगी। उस दौर में भूखंड अनुभाग में एक से एक महारथी बाबू तैनात थे। जो काला सफेद करने में माहिर थे। संभवत दोनों ब्रजमोहन सिंह को उन्होंने अपने फायदे के लिए ही खड़ा किया था। पड़ताल इशारा करती है कि भूखंड मिलना पटना वाले ब्रजमोहन सिंह को था। लेकिन आवंटित हो गया दिल्ली वाले ब्रजमोहन सिंह के नाम। दिलचस्प तथ्य यह है कि दोनों ही ब्रजमोहन सिंह अपनी किस्त की अदायगी करते रहे।
भूखंड अनुभाग के बाबू चाहते तो इस गलती को तभी सुधार भी सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा करना जरूरी नहीं समझा। बल्कि एक गंभीर गलती यह कर दी कि पटना वाले ब्रजमोहन सिंह का दिल्ली कनॉट प्लेस की ओरिएंटल बैंक आॅफ कॉमर्स से बनवाए करीब 94 हजार रुपए के ड्राफ्ट दिल्ली वाले ब्रजमोहन सिंह के खाते में एडजेस्ट कर दिया और 1992 में भूखंड संख्या 588 की रजिस्ट्री भी उसी के नाम कर दी।
ब्रजमोहन सिंह के नाम पर चली आ रही गड़बड़ी 2007 में उस समय सुधारी जा सकती थी जब पटना वाले ब्रजमोहन सिंह अपनी जमा धनराशि जीडीए से वापस लेने आए और उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर उनकी समस्त धनराशि वापस कर दी गई। पटना वाले ब्रजमोहन सिंह के प्रत्यावेदन पर दिल्ली वाले आवंटी से कोई कैफियत तलब नहीं की गई। न ही उन्हें ऐसा कोई पत्र भेजा गया कि उनकी तरफ करीब 1 लाख 35 हजार रुपए बकाया हैं। जिसे एडजेस्ट कर दस्तावेज दुरुस्त करवा लें। जबकि तत्कालीन विधि अधिकारी ने इस कार्रवाई की संस्तुति की थी। अब जब दिल्ली वाले ब्रजमोहन सिंह का देहांत हो गया और उनके वारिसों ने भूखंड के म्युटेशन के लिए आवेदन किया तो जीडीए उनसे तकरीबन 7 लाख रुपए की मांग कर? रहा है। सूत्रों का कहना है कि इस फाइल में पहले दिन से ही गणना का खेल चल रहा है। देखने वाली बात यह है कि जांच के आदेश के बावजूद गणना के इस खेल की मलाई किसने खाई?