प्रदेश नहीं यदि गाजियाबाद समेत आसपास के जिलों की बात करें तो ऐसा लगता है कि चुनाव के बाद अपराधी बेलगाम हो गये हैं। गाजियाबाद को ही देखें तो एक सप्ताह में कैश लूट की दो घटनाएं, बुलंदशहर में बैंक में डकैती, हापुड़ में व्यापारी की हत्या। चैन लूट, समेत अन्य घटनाओं की जैसे बाढ़ सी आ गई है। अपराधों के चलते एक कप्तान निलंबित हो गये। अब विशेष रूप से अस्थाई रूप से कप्तान जिले में भेजे गये हैं। पता चला कि एक अधिकारी तो लूट को खोलने के चक्कर में दो दिन से सोये नहीं। लेकिन नीचे वाले क्या कर रहे हैं। नीचे वाले चैन की बंशी बजा रहे हैं। यदि लूट, डकैती, हत्या हो रही है तो उनके ठेंगे पर। उन्हें तो आराम चाहिये और कुर्सी तोड़ते हुए पैसा। जिनके ऊपर चैकिंग की जिम्मेदारी है वे कुर्सी डालकर आराम से बैठे होते हैं। यदि किसी मामले में कुछ हाथ लगता नजर आ जाये तो फिर इस प्रकार काम करेंगे कि जैसे उनसे बड़ा कोई कमेरा ही नहीं है। यह हाल पहली बार देख रहा हूं। ऊपर के अधिकारियों पर गाज गिरती है तब भी उन्हें शायद होश न आया हो। ऐसा लगता है कि जिले का मुखबीरी सिस्टम भी पूरी तरह से चौपट हो गया है। लेकिन नीचे वालों को छूट किसने दी। यह भी सभी को सोचना होगा। यदि कोई संदिग्ध वाहन मिलता है तो थाने स्तर से उसे छोड़कर कह दिया जाता है क्या करें। सिफारिशें बहुत आ रही थी। जो सिफारिश करवा रहे थे अथवा कर रहे थे कि वे यह नहीं सोचते कि आखिर वे किस मामले में सिफारिश कर रहे हैं। जिले की इसी हालत के चलते एक बार फिर कमिश्नरी सिस्टम गाजियाबाद में लागू होने की चर्चाएं आम होने लगी है। एक पत्रकार साथी ने सोशल मीडिया पर ठीक लिखा कि कमिश्नरी आने से आईपीएस बढ़ेंगे। लेकिन वर्तमान समय में ही कोई कम आईपीएस है। जितने आईपीएस बढ़ेंगे उतना ही सिस्टम बिगड़ भी जाता है। अब तो जिले को ऐसा अधिकारी चाहिये जो चाबुक हाथ में रखे और वह चाबुक ढ़िलाई करने वालों पर बरसे। इसके साथ ही लंगड़ा बनने का खौफ अब कम होता जा रहा है। इसलिए सीधी गोली….