संसद के पिछले सत्र में विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में जो किया था वह लोकतंत्र के मंदिर (सदन) गरिमा को तार तार करने जैसा था। पुरुष एवं राज्यसभा सदस्यों का आचरण जैसा था उसकी सर्वत्र निंदा हुई थी। बेल में आकर जिस प्रकार हंगामा किया गया था, आसन पर गोले फैंके गये थे, मेजों पर चढ़कर जो आचरण किया गया था वह एक सांसद को क्या शोभा देता है।
इन सबके बाद जिस प्रकार राज्यसभा के सभापति एवं उप राष्ट्रपति ने जो कार्यवाही की है वह तो उसी वक्त हो जानी चाहिये थी। लेकिन देर से ही सही यह उचित निर्णय है। हालांकि विपक्ष के विरोध के बाद राज्यसभा के सभापति ने माफी मांगने पर निलंबन वापस लेने की बात कही है। लेकिन हठी विपक्ष माफी मांगना तो दूर यह कह रहा है कि जनता की आवाज उठा रहे थे। लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं।
इस पर विपक्ष से सवाल पूछा जाना चाहिये कि लोकतंत्र में क्या किसी को कुछ भी करने की छूट है। यदि ऐसा है तो अपराधी भी कह सकता है कि लोकतंत्र है वह कुछ भी कर सकता है। विपक्ष की दुहाई क्या लोकतंत्र का मजाक उड़ाना नहीं है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लेकिन लोकतंत्र एवं अभिव्यक्ति की आजादी को ढाल बनाकर देश को शर्मशार करने की घटनाएं एक सभ्य समाज में स्वीकार करने योग्य नहीं है।
जब भी कोई आंदोलन होता है उसमें देश विरोधी नारे लगते हैं। लेकिन जब कार्रवाई का नंबर आता है तो ये लोग ही अभिव्यकित की आजादी एवं लोकतंत्र की दुहाई देते हैं। लोकतंत्र में कुछ नियम, कायदे, कानून है। उनका पालन भी करना होता है। जिस प्रकार का आचरण इन सांसदों ने किया उसके लिए तो कठोर सजा भी कम होती।