Dainik Athah

मंथन

यह कैसा किसान आंदोलन!

तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर अड़े किसान संगठनों ने देश की राजधानी आने- जाने में तो व्यवधान डाला ही हुआ है। लेकिन जिस प्रकार आंदोलन स्थलों पर कभी दुष्कर्म कर, कभी हत्या, कभी पेट्रोल डालकर जला देने की घटनाएं हो रही है इन घटनाओं ने पूरे आंदोलन के साथ ही आंदोलन के नेताओं पर सवाल खड़े कर दिये हैं।

अब देश का हर व्यक्ति पूछ रहा है कि क्या यहीं आंदोलन है कि बहन- बेटी की इज्जत लूट कर मार दो, किसी को पेट्रोल डालकर जलाकर मार दो अथवा तालिबानी हरकत कर किसी दलित की हत्या कर दो। इसके बाद इसे धर्म से जोड़ दिया जाता है।

इसका सीधा अर्थ यह है कि दिल्ली की सीमाओं पर जो आंदोलनकारी बैठे हैं उनके ऊपर किसी का नियंत्रण नहीं है। जब बात अपने ऊपर आती है तो उस समूह से अथवा आरोपी से पल्लू झाड़ने में भी संयुक्त किसान मोर्चा के नेता देर नहीं लगाते।

लखीमपुर खीरी- हाथरस जाने वाले कांग्रेस समेत अन्य दलों के नेता एक गरीब एवं दलित की हत्या पर चुप्पी क्यों साधे है। अब तो न पंजाब एवं न ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पीड़ित परिवार के आंसू पौंछने जा रहे हैं। कांग्रेस के भाई- बहन भी चुप्पी साधे हैं। आखिर क्यों?

देश के लोग कांग्रेस नेतृत्व के साथ ही अन्य दलों से भी पूछ रहे हैं आखिर इस तालिबानी हरकत पर उनके मुंह से दो बोल भी क्यों नहीं निकल रहे। इनकी चुप्पी ही इन दलों को पीछे ले जा रही है। इस प्रकार की हरकतों से एक बड़ा वर्ग भाजपा की तरफ झुक रहा है। यदि लखीमपुर खीरी की तरह सिंघु बार्डर पर हत्या के मामले में भी ये आक्रामक रहते तो शायद देश की जनता के मन में इनके प्रति सम्मान बढ़ता। लेकिन इनकी चुप्पी ही इन्हें पीछे धकेल रही है।

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