… साइकिल वाली पार्टी के दो दावेदारों में मचा है घमासान
साइकिल वाली पार्टी में हिंडन पार में इन दिनों घमासान मचा है। यह दो टिकट दावेदारों के बीच। 2017 के विधानसभा चुनावों में सपा के मजबूत नेता के पुत्र की टिकट पर दावेदारी थी। लेकिन हाथी से उतरकर एक पूर्व विधायक पंजे वाली पार्टी में शामिल हो गये। टीपू भैया एवं पंजे वाले भैया में समझौते के चलते सीट कांग्रेस के पास चली गई और दल बदल करने वाले टिकट ले उड़े। इस बार नेताजी ने पंजे वाली पार्टी को छोड़ दिया और साइकिल पर सवार हो गये। लेकिन पहले से चोट खाये साइकिल वाली पार्टी के पुराने नेता एवं जिला पदाधिकारी इस बार कोई ढील नहीं छोड़ना चाहते। अब स्थिति यह है कि जो दल बदलकर साइकिल पर सवार हुए हैं वे जहां कार्यक्रम करते हैं, उसी स्थान पर पहले से दावा कर रहे नेताजी भी। दोनों में चल रहे शह और मात के खेल को लेकर चटकारे लिए जा रहे हैं। लोगों को कहना है इस बार तो पुराने वाले को ही मौका मिलना चाहिये।
काम ही नहीं तेवर भी बड़े हैं मैडम पार्षद के…
भाजपा शहर मंडल की एक महिला पार्षद पर सत्ता का इतना नशा इस कदर चढ़ गया है कि वह अदालती आदेशों को भी दरकिनार करने लगी है। ऐसा ही एक मामला इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है। दरअसल एक पार्क में धार्मिक स्थल बना हुआ है। जिसका पुजारी पार्क में ही बने अपने आवास के पास नया पक्का निर्माण करा रहा हैं और इस निर्माण का क्षेत्रीय लोग भी विरोध कर रहे हैं। इस निर्माण को क्षेत्रीय लोगों ने यह कहकर रुकवा दिया कि एनजीटी के आदेश के मुताबिक किसी भी पार्क में नया निर्माण नहीं हो सकता। स्थानीय लोगों की इस कार्रवाई पर पुजारी महाशय नाराज हो गए और उन्होंने क्षेत्रीय महिला पार्षद को मौके पर बुला लिया। तो फिर क्या था महिला पार्षद ने भी फरमान सुना दिया कि पुजारी द्वारा कराया जा रहा निर्माण जरूर होगा। मौके पर नगर निगम के उद्यान विभाग के अधिकारी भी पहुंच गए। लेकिन पार्षद अपनी बात पर अड़ी रही। मामला सत्तारूढ़ दल की भाजपा पार्षद का होने की वजह से नगर निगम के अधिकारी भी कुछ ज्यादा नहीं कर पाए और बैरंग लौट गए। इस वाक्ये से स्पष्ट है कि मैडम पार्षद के सामने अदालती आदेश भी बौने हैं। आखिर हो भी क्यों ना, आखिर मंत्री और बड़े नेताओं का उन पर हाथ जो है।
.. नहीं तो कार्यकर्ता नाराज
विधानसभा चुनाव 2022 के लिए सभी पार्टियों में जहां चुनावी तैयारियां चल रही हैं वही विधानसभा में टिकट लेने के दावेदार पार्टी कार्यालय से लेकर लखनऊ और दिल्ली के चक्कर तो लगाए रहे साथ ही साथ सिफारिशों का दौर भी चल रहा है। ऐसे में नीले झंडे वाली पार्टी कार्यालय पर वरिष्ठ पदाधिकारियों एवं कार्यकतार्ओं के मध्य प्रत्याशी को लेकर चर्चा चल रही थी तभी एक कार्यकर्ता ने कहा प्रत्याशी जल्दी घोषित नहीं होना चाहिए। चुनाव की अधिसूचना के बाद नाम की घोषणा होनी चाहिए। नहीं तो कार्यकर्ता की अपेक्षा इस कदर बढ़ जाती है कि… कार्यकर्ता को प्रत्याशी हर मौके पर मौजूद चाहिए, भले ही किसी का कुत्ता क्यों ना मरा हो उस पर भी प्रत्याशी का आना चाहिए, नहीं तो कार्यकर्ता नाराज!