अमेरिकी फौजों की अभी पूरी तरह से वापसी भी नहीं हुई कि तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। इस कब्जे के बाद से कंधार समेत समूचे अफगानिस्तान में हालात गंभीर है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान जिस प्रकार दिल्ली- गाजियाबाद सीमा के हालात थे अथवा मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर जैसे हालात थे उससे बुरे हालात कंधार के अंतर्राष्टÑीय हवाई अड्डे के है। अफगानी किसी भी प्रकार देश छोड़ना चाहते हैं। इसके लिए भारतीय रेल की तरह हवाई जहाज से लटके हैं या उसके पीछे दौड़ रहे हैं। अब सबसे बड़ी बात यह है कि आखिर क्या कारण रहे कि तालिबान इतना मजबूत कैसे हो गया एवं अफगान की सेना कैसे उनके आगे समर्पण करती रही। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण अफगानिस्तान में भ्रष्टाचार को माना जा रहा है।
गनी सरकार में बैठे भ्रष्टाचारियों ने पुलिस एवं सैनिकों को वेतन तक समय पर नहीं दिया, वहीं दूसरा कारण सेना के पास हथियार एवं गोला- बारूद की कमी रही, अफगान सेना के उच्चाधिकारी सेना के हथियारों को तालिबान को देते रहे। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सैन्य अफसरों के रिश्तेदारों के सहारे उनके ऊपर दबाव भी बनाया गया तथा संदेश दिया गया कि उनका बाल भी बांका नहीं होगा। यह बातें अफगानी नागरिकों एवं सैनिकों की जुबानी है। अन्यथा अफगान सेना को अमेरिका ने प्रशिक्षण दिया था। अब हालात बदल चुके हैं। इसका असर पूरे विश्व पर पड़ेगा। भारत भी अफगानिस्तान के हालात को लेकर चिंतित है। भारत की चिंता भी स्वाभाविक है। भारत समेत समूचे देशवासियों के मन में एक अज्ञात भय है कि जिस प्रकार पाकिस्तान एवं चीन की सहायता से तालिबान आगे बढ़ा है उसी प्रकार ये दोनों देश अपने भारत विरोधी एजेंडे को भी तालिबान के जरिये जम्मू कश्मीर में लागू कर सकता है। इसको लेकर भारत की चिंता स्वाभाविक है।
जी
भरष्टाचार ही धरती पर सारे दुखों का कारण है।