संसद की गरिमा बची, न ही परंपरा
इस बार का संसद सत्र याद रखा जायेगा। इस बार के सत्र में न तो संसद की गरिमा बची एवं न ही परंपरा। संसद सत्र के प्रारंभ से ही जो हंगामा लोकसभा एवं उच्च सदन अर्थात राज्यसभा में शुरू हुआ वह इससे पहले नहीं देखा गया। हंगामे के चलते ही लोकसभा को समय से पहले अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। पूरे सत्र में यदि विपक्ष शांत नजर आया तो ओबीसी आरक्षण बिल पेश करने के दौरान। उधर राज्यसभा में सांसदों ने मर्यादा की सभी सीमाएं पार कर दी। कांग्रेस के सदस्य प्रताप सिंह बाजवा तो मंगलवार को रिपोर्टिंग टेबल पर चढ़ गये एवं राज्यसभा सभापति की तरफ किताब फैंकी। इसके साथ ही कागज फाड़ कर टूकड़े तो न जाने कितनी बार फैंके गये। हालत यह रही कि बुधवार को राज्यसभा वैंकेया नायडू की आंखों में हंगामे के चलते आंसू आ गये। इसके साथ ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को हंगामे को लेकर प्रेसवार्ता करनी पड़ी। देश के अनेक राज्यों में तो ऐसा होता आया है कि विधानसभा सत्र के दौरान हंगामा, माइक उखाड़कर फैंकना समेत अन्य उपद्रव होते हैं। लेकिन संसद में यह स्थिति इससे पहले कभी नहीं हुई। क्या ये सांसद अपने क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व करने योग्य है। ये आने वाली पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं। पूरे सत्र में कितना नुकसान हुआ यह तो अलग बात है। लेकिन क्या ऐसे बर्ताव की इजाजत दी जा सकती है। लोकसभा में भी एक बार अध्यक्षता कर रहे राजेंद्र अग्रवाल के ऊपर कागज के गोले फैंके गये थे। हंगामे के कारण सदन में किसी भी मुद्दे पर बहस नहीं हुई। न जनहित के मुद्दे उठे और न ही समाधान हुआ। सीधा कहा जाये तो इस बार सांसदों ने ही संसद की गरिमा को गिराने का काम किया है। अब आगामी समय के लिए कठोर माने जाने वाले ओम बिड़ला अवश्य ही कोई कड़ा कदम उठा सकते हैं। वहीं, राज्यसभा सभापति अपने सौम्य व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। वे उप राष्टÑपति भी है। उनका अपमान क्या पूरे देश का अपमान नहीं है!
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