इन दिनों भाजपा के क्षेत्रीय पदाधिकारियों की नियुक्ति का एक तरह से अभियान चल रहा है। आये दिन किसी मोर्चे अथवा प्रकोष्ठ की सूची सामने आ जाती है। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि एक ही दिन में दो- दो मोर्चों की घोषणा हो गई। यदि इन नियुक्तियों को देखें तो ऐसा लगता है कि चाटुकारिता के साथ ही सलाम बजाने वाला कितनी महंगी गाड़ी में चलता है इसे देखा जाता है। सूचियों को देखकर लगता है कि आम कार्यकर्ताओं को इन सूचियों में कम ही स्थान मिला है।
अभी युवा मोर्चा की क्षेत्रीय टीम की घोषणा हुई। लेकिन इस टीम में गले में सोने की मोटी चेन पहनने वालों के साथ ही महंगी गाड़ियों में चलने वालों को अधिक स्थान दिया गया है। इतना ही नहीं महिला मोर्चा के बाद युवा मोर्चा में भी गाजियाबाद महानगर में रहने वालों के नाम गाजियाबाद जिले में डाल दिये गये। यह केवल खानापूर्ति के लिए। इसे देखकर लगता है कि या तो जिले वालों ने समझौता कर लिया जो हो रहा है वह ठीक है। नाम तो जिले का ही है। जबकि महानगर वालों की बल्ले बल्ले। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सत्ता के साथ भाजपा में आने वालों को नीचे के स्तर पर काम किये बगैर ही क्षेत्रीय कमेटियों में पद मिल गये। इस स्थिति में जमीन से जुड़े कार्यकर्ता मायूस तो होंगे ही। इस स्थिति में ये जमीनी कार्यकर्ता आने वाले विधानसभा चुनाव में कैसे काम कर पायेंगे यह सवाल भाजपा के रणनीतिकारों के सामने मुंह बाये खड़ा नजर आयेगा। यदि पैसे, सिफारिश एवं महंगी गाड़ियों से ही पद मिलने लगे तो आने वाले समय में कार्यकर्ता कहां से आयेंगे। कुछ ऐसे ही बड़े सवाल है जिनके संबंध में भाजपा को सोचना होगा।