Dainik Athah

बिना संसाधनों के अपराधों की जांच में साइबर सेल अपंग

प्रदीप वर्मा

गाजियाबाद। राजधानी से सटे होने की वजह से गाजियाबाद में अपराध के तरीके में बदलाव आया है। हाईटैक गाजियाबाद में अपराध भी ऑनलाइन हो रहे हैं और ऑनलाइन ठगी पर अंकुश लगाने के लिए गाजियाबाद पुलिस के पास कोई पुख्ता जरिया नहीं है। ऑनलाइन अपराधों की जांच के लिए केवल साइबर सेल के नाम से एक प्रकोष्ठ का गठन कर दिया गया है। लेकिन हकीकत यह है कि साइबर सेल के पास न तो पर्याप्त स्टाफ है और ना ही फंड।



साइबर सेल को रिपोर्ट दर्ज करने का अधिकार नहीं

हालत यह है कि ऑनलाइन ठगी के अपराधों की जांच के लिए साइबर सेल को पुलिस थानों का ही मुंह देखना पड़ता है। साइबर सेल के पास इतना भी अधिकार नहीं है कि वह खुद किसी भी पीड़ित की रिपोर्ट दर्ज कर लें, इससे ज्यादा विडंबना क्या होगी। अगर किसी वजह से साइबर सेल निजी संबंधों के आधार पर संबंधित पुलिस थाने को रिपोर्ट दर्ज करने की सिफारिश कर भी देता है, तो रिपोर्ट दर्ज करने में ही थाना पुलिस पीड़ित को चक्कर लगवा-लगवा कर इतना परेशान कर देती है कि आखिर में वह अपने घर बैठ जाता है। सूत्रों की मानें तो थाना पुलिस साइबर सेल की सिफारिश के पीछे यह मानकर चलती है कि उन्होंने पीड़ित से केस खुलवाने की एवज में मोटी रकम ऐंठ ली है। यही वजह है कि पुलिस साइबर सेल की सिफारिश को ज्यादा गौर नहीं करती।


साइबर सेल के पास संसाधन ऊंट के मुंह में जीरा

तत्कालीन एसएसपी कलानिधि नैथानी ने बढ़ते साइबर अपराधों को देखते हुए गाजियाबाद में साइबर सेल गठित किया था इसका इंचार्ज दरोगा सुमित कुमार को बनाया गया। साइबर क्राइम को खोलने के तेजतर्रार उप निरीक्षक माने जाने वाले सुमित कुमार को बैठने के लिए कोतवाली थाना में दूसरी मंजिल पर फ्लोर आवंटित किया गया। इसके अलावा साइबर अपराध के पीड़ितों को इधर-उधर नहीं भागना पड़े इसलिए कोतवाली में ही हेल्प डेस्क बना दी गई। ताकि साइबर सेल के मामलों का निस्तारण अपने स्तर से कराएं। अब बात अगर साइबर सेल के कामकाज की करें तो सीमित संसाधनों में बेहतर कार्य कर रहा है। साइबर सेल ने 6 माह में 32 गैंग सलाखों के पीछे पहुंचाएं हैं लेकिन जिस तरह से साइबर क्राइम हो रहा है, उसके लिए साइबर सेल के संसाधन के ऊंट मुंह में जीरा के समान है। इस समय साइबर सेल में दो महिला पुलिसकर्मियों सहित 12 पुलिसकर्मी काम कर रहे हैं। ‌ साइबर सेल को जो वाहन मिले हुए हैंं, उनकी हालत देखकर नहीं लगता कि वह कहीं लंबी रेस में दौड़ पाएंगे और सुदूर क्षेत्रों से अपराधियों को पकड़ कर गाजियाबाद तक ला पाएंगे। यही नहीं साइबर सेल के लिए शासन की तरफ से अलग से कोई बजट नहीं है, जबकि इस समय सबसे ज्यादा ऑनलाइन ठगी के हो रहे हैं। साइबर सेल को किसी भी केस तक काम करने के लिए संबंधित थाने की तरफ टकटकी लगाए देखना पड़ता है।



साइबर सेल में 3 हजार से ज्यादा शिकायतें लंबित
आंकड़ों की मानें तो 6 महीने में साइबर सेल को ऑनलाइन ठगी के 3 हजार से ज्यादा शिकायतें मिली है। जिनमें कार्रवाई के लिए थाना पुलिस के पास भेज दिया गया है। थाना पुलिस की बात करें तो ज्यादातर शिकायतें लंबित पड़ी हैं। इक्का-दक्का मामलों को छोड़कर या यूं कहे कि बिना सिफारिशें वाले मामलों को छोड़कर पुलिस में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की। साइबर सेल भी उन्हीं मामलों में ज्यादा दिलचस्पी दिखाता है, जिसकी सिफारिश अधिकारियों की तरफ से होती है। ऐसे में सीमित संसाधनों और फंड की कमी से जूझ रहा साइबर सेल हाथ-पैर कटे एक अपंग व्यक्ति की तरह नजर आ रहा है।



साइबर सेल की हेल्प डेस्क पर आई शिकायतें
माह प्राप्त शिकायत निस्तारित
जनवरी 372 310
फरवरी 333 312
मार्च 516 491
अप्रैल 396 160
मई 473 459
जून 594 268

नोट- निस्तारित शिकायतें वह है जो साइबर सेल से संबंधित थानों के लिए भेज दी जाती है यानि वह साइबर सेल तो अपने स्तर से निस्तारित कर देता है, लेकिन थानों में वह लंबित पड़ी रहती है।


क्या कहते हैं अधिकारी

नगर पुलिस अधीक्षक निपुण अग्रवाल ने कहा कि साइबर सेल में 3 हजार से ज्यादा केस लंबित होने का कारण यह है कि साइबर एक्ट में धोखाधड़ी की शिकायतों की जांच निरीक्षक स्तर पर होती है, इसलिए साइबर सेल में आई शिकायतों को संबंधित थानों को भेज दिया जाता है। वहां जांच के बाद मुकदमा दर्ज होता है और आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही की जाती है। उन्होंने कहा कि सभी मामले ऐसे नहीं होते कि जिनमें एफआईआर दर्ज हो। उन्होंने यह भी माना कि शासन स्तर से साइबर सेल के लिए अलग से कोई बजट नहीं है और थानों की वजह से कटौती करके ही साइबर सेल की जरूरतों को पूरा किया जाता है।

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