Dainik Athah

क्या चर्चा उस माली की : कविता

जिनकी घर की दीवारों में
अनगिन भ्रष्ट दरारें हो 
और जिन्होंने हर चौखट के
शीशे स्वयं उतारें हो 
चौखट में भी झांक रहे हो 
चर्चे कई विवादों के 
सुने जा रहे हो परिसर में 
स्वर तीखे संवादों के 
उनको लोकतंत्र की चिंता 
और फिक्र खुशहाली की 
स्वयं बाग के फल खा जाएं 
क्या चर्चा उस माली की

पढ़ा ना हो जिन औलादों ने
पुरखों के इतिहासों को 
झुठलाया हो कदम कदम पर 
पीढ़ी के विश्वासों को 
वही शेंखीयाँ बघारते हो
अपने तल्ख बयानों में 
अजब निशानेबाजी देखी 
उनके तीर कमानों में 
रुतबा देखा सबने उनके 
झूठे वाद विवादों का सबने 
देखी उनकी शैली 
चर्चा भ्रष्ट प्रणाली की 
स्वयं बाग के फल खा जाए
क्या चर्चा उस माली की

कौन जानता नहीं है उनकी
थोपी हुई प्रथाओं को
कानो कान सुना है सबने
मोहक दंत कथाओं को
केवल एक उसी कुनबे का
कब्जा हो दुकानों पर
कुंडली मारे बैठे हो जो
ऊंचे महल मकानों पर
और वही चर्चा करता हो
खुद की ही कंगाली की
स्वयं बाग के फल खा जाए
क्या चर्चा उस माली की

कृष्ण मित्र

वरिष्ठ कवी

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