लंबे समय से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों की भिड़ंत भाजपाइयों से हो गई। यह भिड़ंत ऐसे ही नहीं हो गई। पूरी तैयारी के साथ हुई। जैसे ही भाजपा के प्रदेश मंत्री का काफिल आया वैसे ही दो सड़कों एवं डिवाइडर को पार करते हुए आंदोलन स्थल से आये किसानों ने भाजपाइयों पर हमला कर दिया। हमला इतना अचानक हुआ कि भाजपा कार्यकर्ताओं को संभलने का मौका भी नहीं मिला। इस दौरान दर्जनों गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई। इसके साथ ही जो भाजपाई हाथ लगा उसकी धुनाई भी हुई। इस घटना ने भाजपा के जिले से लेकर प्रदेश एवं राष्टÑीय नेतृत्व को चिंतित कर दिया है। हमले के बाद भाजपाई पीछे हो गये एवं मौर्चा वाल्मीकि समाज ने संभाल लिया। लेकिन हमले ने जहां किसान आंदोलन को लेकर सवाल खड़े कर दिये हैं, वहीं खुफिया विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं। क्या खुफिया विभाग सो रहा था। उसे किसानों की योजना की कोई भनक नहीं लगी। यह सवाल बड़ा है। गाजियाबाद जिले वाले हिस्से में इस प्रकार की घटना पहली बार हुई है। इससे पहले बहादुरगढ़ एवं सोनीपत बार्डर पर ये घटनाएं हो चुकी है। जिस प्रकार तलवारों, लाठियों, डंडों से हमला किया गया क्या यह किसानों का काम है यह भी सोचना होगा। अब आगे देखना होगा कि भाजपा, प्रदेश सरकार, किसान एवं केंद्र सरकार क्या रणनीति बनाते हैं।