मंथन
कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान जिले के मलेरिया विभाग में एक बड़ा घोटाला उजागर हुआ था। वर्षों से विभाग में तैनात कर्मचारी बगैर ड्यूटी पर आये घर बैठे वेतन ले रहे थे एवं अपने काम धंधे कर रहे थे। इस घोटाले को खोलने का पूरा श्रेय जिले के नोडल अधिकारी सैंथिल पांडियन सी को जाता है। उनके ही प्रयास से इतने बड़े मामले से पर्दा हट सका।
अब जिले में प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार आना शुरू हुआ है। जिले के नये कलेक्टर ने कोविड कंट्रोल रूम के माध्यम से विभागों में उपस्थिति की जांच शुरू करने के निर्देश क्या दिये बेसिक शिक्षा विभाग में बड़ा मामला सामने आ गया। कर्मचारी कार्यालय से गैर हाजिर है। लेकिन उपस्थिति पंजिका में उनकी हाजिरी दर्ज है। ऐसा ही जिला मलेरिया विभाग में हुआ था। इतना ही नहीं कई कर्मचारी जो गैर हाजिर थे उनके नाम के सामने भी अनुपस्थिति दर्ज नहीं थी। इसका सीधा अर्थ विभाग के मुखिया की मिलीभगत से तो यह घोटाला नहीं हो रहा। यह कार्यालय तो वैसे भी बदनाम है। शिक्षक को छुट्टी चाहिये तब भी विभाग के कर्मचारियों को पैसा चाहिये। इसके साथ ही एक और विभाग का जिक्र करना आवश्यक है।
अभिहित अधिकारी कार्यालय को लें तो औषधि निरीक्षक न तो कार्यालय में मौजूद थे एवं न ही उनका नाम उपस्थिति पंजिका में दर्ज था। जबकि 15 में से 14 खाद्य सुरक्षा अधिकारी फील्ड में बताये गये। इनकी उपस्थिति दर्ज होती ही नहीं। इसका सीधा अर्थ तो यह है कि ये अधिकारी फील्ड में है भी अथवा नहीं इसका पता भी नहीं चल सकता। बताते हैं कि अधिकांश केवल दिखावे अथवा कहीं छापा मारना होता है तभी फील्ड में नजर आते हैं। पहले दिन की ही उपस्थिति ने यह साबित कर दिया है कि जिले के सरकारी विभागों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। कलेक्टर साहब को पूरे जिले को ही नये सिरे से दुरुस्त करना होगा।